रविवार, 14 अप्रैल 2013

Ish Mishra


ऐसा नहीं कि भर गए जख्म-ए-दिल एकदम से 
ढक दिया है मैंने उन्हें मरहम-ए-गम से 
बनता रहे नासूर मगर तुमको न दिखे 
है अगर कहीं खुदा तुम्हे महफूज़ रखे 
लेकिन खुदा भी है आस्तिको की खुशफहमी 
उसी तरह जैसे मुहब्बत थी मेरी 
तुम प्यार को निवेश मानती हो 
दिल-ए-बेचैनी को बकवास मानती हो 
प्यार नहीं है कोइ व्यापारिक निवेश 
असुरक्षा के कवच का ढीला परिवेश
[ईमि/१२.०४.२०१३]

1 टिप्पणी:

Ish Mishra ने कहा…

मैंने आज ही देखा