बुधवार, 5 जुलाई 2017

एक ही खौफ (आलोका कुजूर)

एक ही खौफ
हर शहर दिन में रात लगता है।
हर भीड कातिलाना हाथ लगता है। 
बारिश के पानी का बहाव
मुझे तो लहु/ खून का धार लगता है।

एक ही खौफ, मुझे  शामों सहर लगता है।
जान आफत में है, खतरों में शहर लगता है।
शेर आए जो मुकबिल, में कोई बात नही
गाय पीछे से गुजर जाए तो डर लगता है।  

कई-कई्र मौत 
मुझे संसद मौन लगता है।
खाने पर पहरा, खतरे में भूख दिखता है।
गाय जेहन पर बस गया अब 
तो सड़क से संसद तक सनाटा लगता है। 

कौरंवो के एक मौत की खबर 
हेडलाइन लगता है 
मुझे आज गाय तो
भारत का वोटर लगता है। @ राजनीति मुददा लगता है।