रविवार, 7 अप्रैल 2013

जो तेरा है वो तेरा तो नहीं है,



जो तेरा है वो तेरा तो नहीं है,
जो मेरा है वो मेरा तो नहीं है ! 
जो जितना अच्छा दिखता है 
देखो,वो उतना भला तो नहीं है! 
ठीक है,वो चारागर होगा मगर 
बस इतने से वो खुदा तो नहीं है ! 
नजदीक से देखने से लगता है, 
कहीं वो मुझसे जुदा तो नहीं है ! 
रह-रह कर कुछ टीसता-सा है , 
कहीं मुझको कुछ हुआ तो नहीं है ! 
कुछ जो भी यहाँ पर गहरा-सा है, 
कभी हर्फों में वो बयाँ तो नहीं है ! 
हर जगह वो मुझसे छुपता है 
कहीं वो मेरा राजदां तो नहीं है ! 
हर पल बस तेरा नाम लेता हूँ, 
ओ मेरे खुदा रे कहाँ तू नहीं है ! 
हर हद तक जाकर तुझको खोजा 
कहीं तू मेरे दरमियाँ तो नहीं है ! 
हर्फों का शोर ये समझ ना आये 
कहीं तू हर्फों में ही निहां तो नहीं है !!

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