फटता है ज्वाला मुखी
गर्म टुकड़े की तेजाबी बारिश
विचलित कर देती है.
" जायज़ पैसे से इलाज करना।"
लड़ खडाती देह, लेकिन पुख्ता ज़बान से कहे
आपके शब्द नींद से जगा देते हैं!
अब्बी! आपकी परवरिश
इतनी कमज़ोर हरगिज़ नहीं कि
बाज़ार कर ले ईमान का अपहरण!
पता नहीं आप क्या कहना चाहते थे.
आपकी आँखों में ठहर गया पानी
हमें बार-बार डुबो जाता है!
एक मौक़ा मिला जिसे हम गंवा बैठे
आपको अपने साथ नहीं रख सके.
दुआएं पानी भर रही हैं!
मन्नत महज़ संज्ञा ही तो है!
पिता ! मन्नत यह भी थी कि
माँ सी मित्र के सात फेरे के बाद सात हज़ार बार नाचूँगा!
लेकिन शोक-नाच की थिरकन थमती ही नहीं!
वो घना बरगद तो तुम्हारे साथ ही गुम हुआ
चन्द शाख हैं,
उसे पल्लवित तुम्हारी बातें ही करेंगी
मगर धीरे-धीरे!
उसमें खिला फूल
सच, इन्साफ और संवेदना के होने पर
खिलखिलायेगा
इठलायेगी खुशबू
घर-आँगन, गलियारे में!
आज जब तुम्हारे कुर्ते ने जिस्म को छुआ
तुम्हारे अनीति के विरुद्ध प्रतिकार ने दहाड़ मारी
सारे कपडे भी तो तुमने पहले ही कर दिए थे दान
काबा से लाया अपना कफ़न भी तो दे दिया
डायरी में जहां-तहां गुदे शब्द
पैबंद लगे कुर्ते और फिजा में बिखरी
बातें तुम्हारी
मैं इस विरासत को किसी सोने जड़े संग्रहालय में क़ैद नहीं करूँगा
तुम्हारी यायावरी की तरह मुक्ताकाश दूंगा
नन्ही उँगलियों का स्पर्श उसे और पुनर्जीवित करेगा।
छत्तीसगढ़ के जंगलों की बयार को
तुमने झारखंड में सहेजा
नींद में कभी एकाध स्पर्श से मेरे जाग जाने वाले तुम
रांची में मेरी गोद में शिशु सा खर्राटे भरने लगे!
तुम्हारी पेशानी की तपिश मेरी रूह को बेज़ार करती है।
उन्हें कहाँ ढूंढू जिन्हें तुमने पढ़ाया
अब वे गाँव में भी तो नहीं होंगे!
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कई गाँव में गया तो मैं भी
तुम्हारे कंधे पर सवार होकर .
बरसाती नदी को एक मटके के सहारे पार करना अब भी डरा देता है.
लेकिन सूरज ढले जंगल को तीरगी को
भेदना अब भी मुझे रौशन करता है!
यह रौशनी हर उस अँधेरे के पार मुझे ले जाने का
दंभ नहीं भरती, एहसास मुकम्मल करती है।
( अब्बी यानी मेरे पिता अविभाजित मध्य प्रदेश में मलेरिया इन्स्पेक्टर रहे. हज़ारों गाँव का दौर किया। ड डीटी छिडकाव उनकी ज़िम्मेदारी रहि. शाम को वे गाँव के बच्चों को पढ़ाने बैठ जाते. वंचित को कॉपी-किताब भी देते. उन्हें याद करते हुए ..यह पंक्तियाँ।।एक अधूरी कविता का कच्चा ड्राफ्ट ही है ).
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