बुधवार, 27 अगस्त 2014

जाने क्यूँ प्यार ना मिला ,


जाने क्यूँ प्यार ना मिला

जाने क्यूँ फूल न खिला



जाने क्यूँ उनको मुझसे  
हर क़दम पे था गीला। 

खाब जो देखे थे हमने  

क्यूँ नहीं पुरे हुए।
वो मेरे होकर भी अब तक 

क्यूँ नहीं मेरे हुए
एक ही छत के निचे हम क्यूँ 

हैं अधूरे और बँटे, ज

बाक़ी कुछ भी ना रहा
फिर क्यूँ रह गया सिलसिला।
स्म से क्यूँ जां जुदा 

वक़्त से 


लम्हे कटे।
 
प्यार करने से शायद 

सब को मिलता ये सिला।

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

जीते जी गर हुझसे मीठी बातें ना कर सके


जीते जी गर हुझसे मीठी बातें ना कर सके ,
बाद मरने के मेरे तुम , 
अश्क़ बहाओ भी तो क्या।
हर पल ये एहसास होता है के मैं तो तन्हा हूँ ,
द मरने के मेरे तुम पास आओ भी तो क्या।
अपने
वक़्त से नाकारा रूठा-रूठा सा एक लम्हा हूँ।
बा वीराने में एक दिन 

चुपके से बहार आई

,
जीने का मक़सद देकर वो 

मुझको जीना सिखलाई। 

लना था ,

तप्त रेत मेँ भी कांटे थे 
पर मुझको तो

बाद मरने के मेरे तुम खुशी में शामिल हुए तो क्या।

शम्मा बनकर महफिल में , मुझको तो बस 

जचलना था।
बाद मरने के मेरे , चारागर बनके आओ तो क्या।
जीने मरने की कसमों के संग मेरे तो जुड़ गए ,

१८/१०/२००८
अपनी नफ़रत देकर मुझको , राह अपनी मुड़ गए।
बाद मरने के मेरी तस्वीर से प्यार करो तो क्या।


उत्तम पाल