अक्खड़ , फक्कड़ , मस्त कवि है सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र . उनकी कविता है :
जात -पात में भेद कहाँ
अब केवल झूठी शान
बाबू साहब ने खोली है
जूते की दूकान
लौंड्री में लोगों के कपडे
पंडित जी हैं धोते
छान रहे हैं गरम जलेबी
लाला जी ( कायस्थ ) के पोते
शर्मा जी का डेरी फारम
रखते भैंस पचास
दूध मिलाते हैं पानी में
और बने हैं व्यास
बन कलाल यादव जी बैठे
रोज कलाली खोले
रविदास जी कावर लेकर
हर हर बम बम बोले
पासवान जी ने टाउन में
खोली है सैलून
बिसकरमा के बेटे बेचें
हल्दी धनिया नून
वर्ण व्यवस्था टूट चुकी है
सब हैं एक ही घाट
जिसके पाले जितना पैसा
उसकी उतनी ठाट
फिर झगड़े क्यों जात-पात के
कुछ सोचो कुछ जानो
कौन लड़ाता है आपस में
बूझो और पहचानो ......
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