गुरुवार, 24 मार्च 2011

शहादत

डा0 खगेन्द्र ठाकूर
 
मैं उभी जिस मूर्ति के पास खड़ा हूं।
वह एक  शहीद की  है,
मैं उसे सहला रहा हूंँ
बहुत अच्छा लग रहा है।
बहुत ही जीवन्त मूर्ति है।
कलाकार ने उडेल दी है।
अपनी सारी कला
इसे जीवन्त बनाने में
तभी अचानक मेरे मन में
यह विचार आया कि
यदि अचानक दौड़ने खून उनकी नसो से
और वह मेरा हाथ पकड़ ले
और कहे- कामरेड
चलो यही समय है कूच करने का
तो मैं क्या करूँगा?
यह विचार मन में आते है
मैं वहां सरपअ
भाग खड़ा हुआ।

रविवार, 20 मार्च 2011

उम्मीद के पालू में रिश्ते

उम्मीद के पालू में रिश्ते 
 एक रिश्ता हर कोई के पास है.
हर के पास एक आशा 
उम्मीद हर के पास 
बंधे है पालू में 




शनिवार, 19 मार्च 2011

तुम्हारे शहर

 mirchi
तुम्हारे शहर का मौसम
बड़ा सुहाना लगने लगा
सुबह के घुप की कोमलता
बड़ा सुहाना होता है।
दिन की रौशनी में
तपते-तड़पते अच्छा लगे
नहीं संभव है तुम्हे भुलाना
तुम्हे भुलाने में हमें जमाना लगे।
बुरा न मानों
तो शाम थोड़ा चुरा ले
न जाने तुम
इतना जिन्दगी से बेबस
क्यों लगे
इतना जिन्दगी से
अगर वेबस न होतो
तेरे शहर से
थोड़ा छण दिल लगी
कर आए