शनिवार, 19 मार्च 2011

तुम्हारे शहर

 mirchi
तुम्हारे शहर का मौसम
बड़ा सुहाना लगने लगा
सुबह के घुप की कोमलता
बड़ा सुहाना होता है।
दिन की रौशनी में
तपते-तड़पते अच्छा लगे
नहीं संभव है तुम्हे भुलाना
तुम्हे भुलाने में हमें जमाना लगे।
बुरा न मानों
तो शाम थोड़ा चुरा ले
न जाने तुम
इतना जिन्दगी से बेबस
क्यों लगे
इतना जिन्दगी से
अगर वेबस न होतो
तेरे शहर से
थोड़ा छण दिल लगी
कर आए

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