डा0 खगेन्द्र ठाकूर
मैं उभी जिस मूर्ति के पास खड़ा हूं।
वह एक शहीद की है,
मैं उसे सहला रहा हूंँ
बहुत अच्छा लग रहा है।
बहुत ही जीवन्त मूर्ति है।
कलाकार ने उडेल दी है।
अपनी सारी कला
इसे जीवन्त बनाने में
तभी अचानक मेरे मन में
यह विचार आया कि
यदि अचानक दौड़ने खून उनकी नसो से
और वह मेरा हाथ पकड़ ले
और कहे- कामरेड
चलो यही समय है कूच करने का
तो मैं क्या करूँगा?
यह विचार मन में आते है
मैं वहां सरपअ
भाग खड़ा हुआ।
वह एक शहीद की है,
मैं उसे सहला रहा हूंँ
बहुत अच्छा लग रहा है।
बहुत ही जीवन्त मूर्ति है।
कलाकार ने उडेल दी है।
अपनी सारी कला
इसे जीवन्त बनाने में
तभी अचानक मेरे मन में
यह विचार आया कि
यदि अचानक दौड़ने खून उनकी नसो से
और वह मेरा हाथ पकड़ ले
और कहे- कामरेड
चलो यही समय है कूच करने का
तो मैं क्या करूँगा?
यह विचार मन में आते है
मैं वहां सरपअ
भाग खड़ा हुआ।
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