मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

खामोश अंधेरा

खामोश  अंधेरा  
आलोक
आज शहर की रात गहरी है
खामोश अँधेरा  है
रात रुक गई है
लग रहा है
कल का सूरज
आश्मान में आयगा भी की नहीं
उस घर जहा
कल तक सपने बुने जाते थे
जहाँ
आज सपने लुटते हुए देखा  है
वर्सो लग गए थे
आसियान  बने में
पल में मिटटी में
बदल दिया
उनके जहा को
आज उनके जहा
अँधेरा है
कल का सपना
बदल गया है
पल में आपने
बेगाने हो गए है


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