बुधवार, 14 नवंबर 2018

तुम काली हो या गोरी(तीर्थ नाथ आकाश)

तुम काली हो या गोरी
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम लम्बी हो या छोटी
कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम मोटी हो या पतली
मुझे कोई दिक्कत नहीं
अल्फाज आपके मेरे रूह को छू जाते हैं
आपकी सांसे मेरे सांसों में घुल जाती है
आप जेठ की दुपहरी में 
बारिश बन मेरे जीवन को भिगोती हो
तो कभी धान की बाली बन 
मेरे जीवन में लहलहाती हो आप
पता नहीं कब आप नदियों की तरह 
मेरे जीवन में बहने लगी हो
और घोंसले से दिल में
गौरैया की तरह रहने लगी हो.

#थोड़ा समझा करो.

बहुत दूर हूं आपसे (तीर्थ नाथ आकाश)

बहुत दूर हूं आपसे
पर दुआ मेरी आपके साथ है,
मैं पड़ा हूं कहीं,
पर हर फरियाद आपके साथ है,
जन्मदिन है आपका,
दुआ यह करता हूं आज
मैं रहूं ना रहूं
हर ऊंचाई आपके साथ रहे,
आकाश से भी ऊंचा
नाम हो आपका,
हमारी तो है
छोटी सी दुनिया
पर परमेश्वर चाहता है कि
सारे संसार में नाम हो आपका

रख हौसला,

रख हौसला, वो मंज़र भी आएगा
प्यासे के पास चल के, समंदर भी आयेंगा
थक कर ना बैठ, ए मंजिल के मुसाफिर
मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मजा भी आएगा.

रंग तो बस रंग है (तीर्थ नाथ आकाश)

रंग तो बस रंग है
इससे क्या फर्क पड़ता है
रंग काला हो या गोरा
रंग हरा हो या लाल
रंग से ज्यादा #व्यक्तित्व मायने रखता है
मायने रखता है मन का रंग
वो सफेद है या काला
किसी का चेहरा
बस उसको पहचानने के लिए होता है
चेहरे से किसी का व्यक्तित्व नहीं झलकता.
तोड़ देंगे हम #रंग_भेद की दीवारें
तोड़ देंगे हम #जाति_भेद की दीवारें
गिरा देंगे हम #धर्म_भेद की दीवारें
डाह देंगे हम #लिंग_भेद की दीवारें

उन दिनों का वो लाल रंग( तीर्थ नाथ आकाश)

उन दिनों का वो लाल रंग
(पीरियड पर मेरी कविता)

उन दिनों का वो लाल रंग
बस लहू नहीं है
वो पहचान है स्त्री होने की
वो स्त्री जो मां है
वो स्त्री जो बहन है
वो स्त्री जो दो परिवारों का बंधन है

उन दिनों का वो लाल रंग
धर्म है उनका
अपवित्र नहीं पवित्र है
सभ्य है सुशोभित है
सुनों दोमुखी समाज हमारा
वो लाल रंग आये तो दिक्कत
ना आये तो दिक्कते दिक्कत
सुनो कोई बकवास नहीं है
यह जरूरी बात है
उन दिनों का वो लाल रंग

वो बस लाल रंग नहीं
जिस्म के हिस्से से
बहता लहू है
वो सींचता है
एक नए बीज को
मैं समझता हूं तकलीफ 
उस मासिक धर्म की
जो तुम्हे(स्त्री) को दर्द देता है
मैं हूँ एक पुरुष लेकिन
यह जानता हूं कि
मैं भी ना होता अगर ना होता
उन दिनों का वो लाल रंग.

समझता हूं तकलीफ होती है
तुम्हारा मन विचलित सा होता है
उन दिनों में तुम चिड़चिड़ा जाती हो
लेकिन मैं भी तो हूं
तुम्हे संवारने को
तुम्हारे मन के उस भटकाव 
हर बार समेटने को
तुम ये मत समझना कि
मैं नहीं समझता हूं
तुम्हारे बार बार बाते बदलने को
छोटी सी बात पर चिल्लाने को
मैं आज खुल कर यह कहता हूं
पीरियड के दिनों में
जब तुमसे बात करता हूं
बिना कारण के तेरा झगड़ना
समझ जाता हूं कि तकलीफ में हो तुम
लेकिन मैं मानता हूं कि
हमारे लिए भी जरूरी है 
उन दिनों का वो लाल रंग.

सभी महिलाओं को मेरा #लाल_सलाम...

तेरी दी हुई चादर ( तीर्थ नाथ आकाश)

तेरी दी हुई चादर
(मेरी कविता)

तेरी दी हुई वो चादर
तेरे होने का एहसास दिलाती है
तेरा मेरे माथे पर हांथ फेरना
तेरा मेरे कानों में कहना
मेरे हाथों को भरोसे से पकड़ना
हर बात याद दिलाती है 
तेरी दी हुई चादर

तेरी खुशबू है इसमें
मेरे पैरों को गुदगुदाती है
मेरे जीवन के हर कांटे को
गुलमोहर बनाती है
तू साथ है हर वक्त
तेरे स्पर्श को ताजा करती है
तेरी दी हुई चादर

मैं तुमसे दूर नहीं रह पाता
जीवन का एक पल भी
सोच नहीं पाता
तुमसे जुदा होने का सोच कर
मैं उदास हो जाता हूं
जीवन के हर संघर्ष से
लड़ कर - थक कर
जब घर आता हूं
अपने बिस्तर पर जाता हूं
तब मेरी थकान भगाती है
तेरी दी हुई चादर

सुनो ना गलती हो जाती है
मैं भी इंसान हूं
हर बार सही नहीं हो पाता हूं
जब हांथ पकड़ती हो मेरा
तो लगता है तुम ही जिंदगी हो
जब साथ चलती हो मेरे 
तो लगता है बस तुम ही हो
आगोश में तेरे खोना चाहता हूं
तुझे आगोश में रखना चाहता हूं
जब मैं कभी टूटता हूं या
बिखरने लगता हूं तो
मुझे समेट लेती है
तेरी दी हुई चादर

तेरी यादों की कविता बनाऊँ (तीर्थ नाथ आकाश)

तेरी यादों की कविता बनाऊँ
उसे फिर मैं नए शब्दों से सजाऊँ
क्या लिखूं क्या ना लिखूं
तेरे साथ गुजारा हर पल कविता
उलझे सुलझे अल्फाज सारे
तू कुछ कह दे तो कविता

मुझसे बाते करते तेरा सो जाना
तेरी सांसे का उलझ जाना
सुबह आधी नींद में
मुझसे हल्की मुस्कान से बात करना
तेरा प्यार से कैसे हो कहना
इन सब बातों में बनती है कविता

मेरी वीरान जिंदगी थी
तू आई नया एहसास आया
जो कभी ना हुआ
जो कभी ना किया
कई बार कुछ नया कर पाया
तेरे मुझे मुस्कुरा कर देखना
मेरी हांथों को भरोसे से पकड़ना
गले लग मेरी पीठ थपथपाना
फिर यह कहते हुए चले जाना
की ख्याल रखो अपना
सुनों यह भी तो है कविता

गेंदा फूल की तरह तेरी खुशबू
उड़हुल फूल सी तेज तुममे
पंक्षी सी उड़ती हो तुम
कभी यहां कभी वहां
तितली सी कई रंग है तुममे
तुझे देख मैं भी सीखता हूं
मेरी जिद को तुमने संभाला
बन एक मजबूत चट्टान तुम
मेरी मुश्किलों से टकराती हो
मेरे दुखी होने पर
हर बार तेरा कहना तुम ठीक हो
बोलो तो क्या यह नहीं है कविता

करंज कर तेल, ( तीर्थ नाथ आकाश)

करंज कर तेल कर दिया....
शांत सड़क
शांत मंजिल
शांत किनारा
शांत मैं..

मैं अकेला ( तीर्थ नाथ आकाश)


मैं अकेला 
लेकिन दीवाली अकेली नहीं
कितने दीप जले
कितनी जली मोमबत्तियां
सब ने दुआ की उससे
की दूर हो अंधियारा
लेकिन क्या अंधेरा दूर हुआ
नहीं कभी नहीं
खत्म नहीं हो सकता अंधियारा.
कभी मन में दीपक जलाओ
कभी मन के घर भी सजाओ
कुरीतियों को करो समाप्त
बदलों समाज का रूप
हर एक व्यक्ति रहे खुश
हर घर आये खुशहाली
मैं अकेला, जीवन भी अकेला
फिर भी सब के लिए
दुआ के साथ एक दीप जलाली
सभी को हैप्पी दीवाली.

सोंचा एक तस्वीर बनाऊँ (तीर्थ नाथ आकाश)


सोंचा एक तस्वीर बनाऊँ
लेकिन फिर याद आया कि
मेरे जीवन के सारे रंग 
कहीं खो गए.
मैं बन्द अंधेरे कमरे में
कुछ ढूंढ रहा था
कुछ खोज नहीं पाया
बस रोता रहा सिराहने तकिए के
रात गुजरती रही 
लेकिन मैं जगता रहा
सुबह के इंतजार में
तुम्हारी दी हुई चादर को
लपेट कर सोने की कोशिश में
तुम्हारी याद फिर रुला जाती है
तुम याद रखना कि 
मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं
जंगल जैसे नदी बिन अधूरा
घड़ी की सुई टिकटोक बजती 
सुन उस आवाज को मैं
इंतजार करता हूं तुम्हारे आने का
तुम जब कहती हो कि
मेरा प्रेम झूठा है
तब मन टूट जाता है
लगता है सर पटक तेरे कदमों में
खुद को मार दुँ
जब तुम कहती हो कि
मुझसे दूर रहो 
तब मन करता है
खुद की जिंदगी खत्म कर
तेरा जीवन संवार दुं
लेकिन करूँ तो क्या
जीवन कोई धागा नहीं 
जिसे जब चाहा नोच लिया
लेकिन अब यह खत्म होगा
ना तेरे करीब रहूंगा
ना तुमको कोई तकलीफ होगा
अब मैं अपने राह चलूंगा
हर भीड़ में अकेला
बिना किसी सहारे चलूंगा
मैं तकलीफ में हूं
मेरे जीवन में
मेरे शरीर में
इतना दर्द है कि
मैं बता भी नहीं सकता
लेकिन चलो अब खत्म करों
जाओ तुम जी लो
खुश रहना तुम
मुझे मिस कर रही हो
अब मत कहना तुम
मैं चलता हूँ 
तुम्हे भूलना आसान नहीं 
लेकिन मैं मरता जीता
चलता हूँ.

जीवन कोई धागा नहीं( तीर्थ नाथ आकाश)

जीवन कोई धागा नहीं
कि नोच दिया जाय या
खत्म कर दी जाय
सांस की अंतिम डोर
अटकी है
सब रुक गया है
सब धुंध पड़ने लगा है
अब जीवन का अंतिम क्षण
ये रिस्ते नाते - पैसा कोड़ी
सब मोह माया
सत्य बस मौत है
बाते भले ही बहुत पुरानी
लेकिन यादें ताजा है आज
जैसे बात हो कल परसो की
आपके हांथों की तेल मालिस से
मजबूती से खड़ा हूं आज
बचपन से मेरे समर्थन में
पापा से लड़ना
शायद इसीलिए मैं बिगड़ा हूं
आपका मेरे दर्द पर रोना
मुझे खिलखिलाता देख
आपका भी मुस्कुराना
घर रूपी गुलक का
आप महत्वपूर्ण सिक्का हो
एक भरे पूरे परिवार
की छाया हो आप
हर बात याद आई
आपको देख कर
मन रोया
शायद कुछ पल हो आप
घर के दरवाजे पर
आपका बैठ कर रहना
कहीं से आने पर
सबसे पहले कहना
#कहां_से_आवे_हैं_बेटा
फिर मेरा चिल्ला कर कहना
#की_दिन_भयर_पूछते_रहे_हैं
मैं निःशब्द हूं
दुखी हूं यह सोचकर की
आपको ना देख पाऊंगा
लेकिन हम बस तुच्छ मानव
कर भी क्या सकते है
वक्त के कांटे को घुमा का
कुछ महीने पहले ले जाऊं
रोक दुं उस समय को वहीं
यह बस कहने की बातें हैं
संभव तो नहीं
क्या कहूं अब तो
कहना नहीं कहना सब बेकार
बस अंतिम यह कहूंगा
आपके जाने से
घर की एक पीढ़ी खत्म हो जाएगी
हम याद करेंगे आपको
लेकिन मिल नहीं पाएंगे
जहां भी जाएं आप
हमें याद रखना
मैं जानता हूं
जाने के बाद आना संभव नहीं
लेकिन अगर थोड़ी सी भी
सम्भावना हो तो
लौट आना आप
हम आपकी यादों को समेटेंगे
यह क्षण बड़ा ही दुखदायी
घर की नींव मेरी दादी
अपने अंतिम समय पर आयी
बस सांसे चल रही है
बाकी सब बन्द
अब बस अंतिम क्षण
अब बस अंतिम क्षण.
मेरी दादी की स्थिति नाजुक
बस सांस चल रही है.
सुभाष दादु, बड़ी फुआ, छुटु दादु, लखन दादु.

तन माटी (तीर्थ नाथ आकाश)

तन माटी
तन काया 
इस धरती पर
सब मेहमान
कोई पहले जाता
कोई थोड़े बाद
बस यादें रह जाती है
सब यहीं छूट जाता
जाता कुछ भी नहीं
सब जल माटी हो जाता.

मेरी दादी का देहांत हो गया.

शिबू आंदोलन का नाम है (तीर्थ नाथ आकाश)

शिबू आंदोलन का नाम है
शिबू बदलाव का नाम है
शिबू क्रांति की गाथा है
शिबू में झारखंडीयों की आस्था है
शिबू संघर्ष की निशानी है
शिबू बहता पानी है
शिबू बगावत की आवाज है
शिबू विद्रोह की साज है
Dr Nishikant Dubey तू ये भूल कभी नहीं
तू शिबू के पैरों का धूल भी नहीं
शिबू किसान का बच्चा है
शिबू लाख बुरा है
लेकिन तुझ बिहारी से अच्छा है
माटी पुत्रों की शान है शिबू
शिबू आम इंसान नहीं
झारखंडी बेटे का नाम है शिबू ।।
इसे कोई ये ना कहना कि मैं jmm से हूँ , लेकिन दिशुम गुरु है शिबू सोरेन , झारखण्ड के प्रति इनका संघर्ष अतुल्य है ....!!!!
एक बिहारी झारखंडी माटी के पुत्र को भला बुरा कैसे कह सकता है.
नहीं सुदेश के खिलाफ भी नहीं, बाबूलाल के खिलाफ भी , हेमन्त के खिलाफ भी , किसी झारखंडी जन के बारे में किसी बाहरी से नहीं सुन सकता हूँ एक लब्ज .

बिरसा तुम्हें कहीं से भी आना होगा (तीर्थ नाथ आकाश)

बिरसा तुम्हें कहीं से भी आना होगा
घास काटती दराती हो या लकड़ी काटती कुल्हाड़ी
यहां-वहां से, पूरब-पश्चिम, उत्तर दक्षिण से
कहीं से भी आ मेरे बिरसा
खेतों की बयार बनकर
लोग तेरी बाट जोहते.

बिरसा मुंडा(जन्म: 15 नवंबर 1875 मृत्यु: 9 जून 1900) अमर रहे..
बिरसा का उलगुलान मात्र विद्रोह नहीं था. यह झारखंडी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था.
हालात आज भी वैसे ही हैं जैसे बिरसा मुंडा के वक्त थे. आदिवासी खदेड़े जा रहे हैं, गैर झारखंडी अब भी हैं. जंगलों के संसाधन तब भी असली दावेदारों के नहीं थे और न ही अब हैं.

माटी झारखण्ड की (तीर्थ नाथ आकाश)

माटी झारखण्ड की
गाये संघर्षों की गाथा
जलाई गई यहीं
क्रांति की मशाल

इस मिट्टी में
बिरसा तेरा लहूं बहा
लाखों क्रांतिकारियों ने
लड़ हमें अपना राज्य दिया

बिरसा ने शुरू कर लड़ाई
निर्मल को सौंप दिया
सब ने मर कर
इस माटी को आजाद किया

हवाओं में निर्मल सी खुशबू
और माटी में बिरसा का लहूं लाल
200 साल लड़ाई के बाद
झारखण्ड हुआ गुलामी से आजाद

ना हम कभी बंगाली रहे
ना रहे कभी उड़िया
ना हम थे कभी बिहारी
हम कल भी थे झारखंडी
हम आज भी हैं झारखंडी
हमेशा हम रहेंगे झारखंडी

अबुआ दिशुम - अबुआ राज
बस नारा नहीं 
यह आवाज है 
जो बिरसा ने दिया
गुलामी की हर जंजीर तोड़ 
हम लड़ेंगे स्वराज के लिए
हम लड़ेंगे हक के लिए

बिरसा की लड़ाई 
अब हम भी लड़ेंगे
ना मिला हमको हक जो
वो हम ले के रहेंगे
जमीने लूट गई हमारी
जंगल कट गए हमारे
बाहरियों ने नदियों को भी बांध दिया

युवा हुआ अब झारखण्ड
अब तीर धनुष उठायेगा 
अब ना लूटेगा झारखण्ड
हमें अब संकल्प लेना होगा
इस माटी का कर्ज चुकाना होगा
बिरसा के सपनों का 
झारखण्ड हमें बनाना होगा

स्थापना दिवस की शुभकामनाएं...

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

फांसी टुगरी (Aloka Kujur)

फांसी टुगरी

धोडे के पैरो से उडाते धुल
टोला टोला छः छः कोस
टुगरी के ई कोह से उ कोह तक
धुल पत्ता से ढके आंगन
मौजूद है, गवाह है
चीता पच्चो की लूटती जमीन पर
गोतिया का पहरा  कब्जा ही तो था
तिलमिलाती बेटी फसल बो कर
शहर कमा आती।
नही काटा अपने फसल को
कनकनी रातों मे भी
पोवाल नही लाया घर
रात भर जलती रही 
चूल्हा चीता पच्चो के
भीतर बाहर होते लोग
बस्ती मे कोना कोना घर से
धुआ को चांदनी रात मे निहारते सब थे
कार्तिक की जाड़ा भूख के आगे कम थे।
संघर्ष टुंगरी के हर घर मे
जस का तस
किसान बेटी  के ललाट पर

दम अभी भी है कल भी था।

बेटी (aloka Kujur)

बेटी
पांच बेटी की मां
गांदूर टकटकाई पूना के बेटे निहार 
इच्छा के छन को मन की र्दद लिए
बेटे ना होने का दुख खूद को कोसती 
खेतो में हल कौन चलाएगा बोल हलका 
मन को कर लेती 
बुढापे में कमाकर कौन खिलाएगा 
अंतिम संस्कार  तक कौन होगा
जैसे सवालो से मन भरी चेहरे में उदासी के पल
हर घर से पूछते है बच्चों के हाल
“ाब्दों मे व्यर्थ और आखों नम
स्वर में उदासीता के जबाब होते
समाज के समक्ष कुछ बोलकर 
बदलाव के धुन कानों में सुनते रहे
अंदर घरों में वही निमय
जरूरत ने दामन को आजाद किया
म”ाीनी युग ने बेटी को पहचांन दी
घर की चाहत ने सम्मान पर कसक
चाहत की थी चाहत बदलाव की थी 
बदलते समाज स्वर और बढ़ते भेद ने 
कसौटी पर बेटी को जगह दिया पर आजादी छिन्न ली 
संस्कार वही मन की चाहत उसकी अकेले नहीं 
सस्ती श्रम और सेवा के आगे 
दौड लगा रही लिंग भेद के हवा
बेहतर और चाहत के बीच 
परम्पराओं के धीरे हुए आज भी है बेटी 

शाम (Aloka Kujur)

आज की शाम मेरे लिए अनोखा रहा।
किरण का सो जाना मेरे लिए सुकून रहा।
लौटती भीड मे खोया मन मेरे लिए आनमोल रहा।
मुस्कुराते चांद के साथ एक पल और रहा।
आंगन मे चांद का महकना कुछ और रहा।
ह्मदय मे हवा का एहसास कुछ और रहा।

जीवन मे हर शाम कुछ कहता रहा
दीया लिये भाभी अगली मनत को तैयार रही।
शोर इतना की मनते से बडी डीमांड हुई
शाम की चाय का नजारा ही कुछ और रहा।
पलको मे यादे थी शमा को ओर बंध रहा।
जल रही है बाती घरो मे छाया कोई ओर रहा।
पल भर की तन्हाई और खो जाता ये जमाना रहा।

शाम के इस पहरे दार से जमाने से कह रहा।
हाथो मे लिए चल रहे है मन की कौन सुन रहा।
जहाँ मे शाम एकलौता है देखो कौन इसे बांट रहा।
बादल रौशन है आज कि
 कल कुछ नाराजगी कुछ और रहा।
आज की शाम मेरे लिए अनोखा रहा।
किरण का सो जाना मेरे लिए सुकून रहा।
लौटती भीड मे खोया मन मेरे लिए आनमोल रहा।
मुस्कुराते चांद के साथ एक पल और रहा।
आंगन मे चांद का महकना कुछ और रहा।
ह्मदय मे हवा का एहसास कुछ और रहा।

जीवन मे हर शाम कुछ कहता रहा
दीया लिये भाभी अगली मनत को तैयार रही।
शोर इतना की मनते से बडी डीमांड हुई
शाम की चाय का नजारा ही कुछ और रहा।
पलको मे यादे थी शमा को ओर बंध रहा।
जल रही है बाती घरो मे छाया कोई ओर रहा।
पल भर की तन्हाई और खो जाता ये जमाना रहा।

शाम के इस पहरे दार से जमाने से कह रहा।
हाथो मे लिए चल रहे है मन की कौन सुन रहा।
जहाँ मे शाम एकलौता है देखो कौन इसे बांट रहा।
बादल रौशन है आज कि
 कल कुछ नाराजगी कुछ और रहा।

शुक्रवार, 30 मार्च 2018

बूढा बूरू (Aloka kujur)


विनती सुनाने दरार पडे पैरो से
आती हूँ  गांव के पगडडी के सहारे
आंधी तुफानो से बचाया 
अब बचा ले
दिकू की कुदृष्टि से
तेरे काया अब छोटे होते जा रहे है। 
ज़िन्दगी के तूफान उफान पर है
मौत मंडराते गांव पर
साया खोजती दरार पैरो से
कही ढलान नही मिलते 
मिलते है खबर संगी के 
समाप्त जीवन की 
खबर
खतरो के बीच 
जीवन तेरे मेरे 
बचाने के लिए 
ऊंचा उठना होगा
इसी काया से इसी 
तलहट्टी के कोने से

लिली ईस्टर


आलोका

पवित्र जल लिए मुलाकात मां से
लिली के इस गुच्छे लिए
कर देना हवा और मन को भी पवित्र
तैरती सुगंधित  हवा मे 
नवचन्द्रमा से जोग करा आना
नवविधान के रूप मे 
धरती मां मिल आना। 
मृतोत्थान  मात्र वे  
चमकते प्रकाश के बीच 
चिराग हमेशा बनना
इस ऋतु के बीच
प्रेम का संवाद से ढक लेना। 
तेरे लहू की सूली पर 
बंसत पूर्णिमा के बीच
मानव मन भूखा है 
प्रेम और सन्हे के लिए
धरती मे आज भी जीवत है
संकल्प तेरे लिए
हम मानते है लहू मे 


विश्वास भी  मन मे

गुरुवार, 29 मार्च 2018

डूम्बारी बुरू (Aloka Kujur)

डूम्बारी बुरू
इतिहास के पन्नों में दर्ज
बसते है डूम्बारी बुरू नाम जहां 
संघर्ष की साँस
हजारों अरमान पल बढे इस मिटटी में
कुछ जीत गये कुछ हार गये
कई नाम अमर हो गये। 
खाज है डीह में आज भी
निशान है। बिरसा के लहू का
मौजूद है संघर्ष की महक
तान उलगूलान के मौजूद
खीचती मुटठी, खीचते तीर के कमान
नहीं रूकती कोईल
टकराये आवाल नगांडे के
झूम उठती है जंगल
हर एक साज में

बुधवार, 28 मार्च 2018

शब्दकार ( गीत ) आलोका





शब्दकार की बस्ती में ---

बहती सरिता चीत्कार करे
शांति नहीं अब घर में देखो 
औरतो का आपमान मिले -2



कही सीता कही द्रोपती  

फातिमा पर वार हुए 
मर्द की इस दुनिया मे  देखों 
 आग्नि से गुजर रहे 
क्ही चिर हरण, कही हत्या सीमा से तों पार हुए .......  
फूटे स्वर एकता की 
औरतो को सम्मान मिले 
बहती सरिता गुजर रही---- 
 शब्दकारो की बस्ती से 
एक ही शब्द सब से कहती 
 हिंसा  तूम दूर करो को 
माता मरियम ने दिया है 
शांति के बदलाव को 
मदर टेरेसा हमे  दी है --- 
प्रेम  सारे पाठ को 
अब तो शब्दकार की बस्ती में 
ये सारे साज है 
उठो जागोए बदला दो अबए अपने  इस संसार को
स्त्री हिंसा नही सहेगे 
कह दो एक बार तुम 

रविवार, 25 मार्च 2018

हीरामणी

आलोका कुजूर
 हीरामणि
हूल के पन्नों से ग़ायब हो
इतिहास के रास्ते तुमने भी चला था।
क्यो?
फुटकल के गाछ 
जब पूस में अपने को सजते 
रंग बदलती मौसम में
तेरा ओढकन्न कोसो दूर सघर्ष 
के रास्ते पर गाछ ही तो सहारा था।
हीरामणि तेरे शौर्य की गाथा 
ग़ायब कर दिए है
तेरे तीर कमान से निकलते थे
हूल
चारो घने जंगल में 
आग बन पसर जाते थे।
हमने देखी थी 
तेरी वीरता के जंग को
बैठ कारो के बहते धार में
जब निकलती थी झुंड
सरई के गांव से , नही जान पाया थी हीरामणि 
उस तीर की धार को
आज फिर इतिहास
पुकार रहा वीरता के गांव को
चलोगी हीरामणि हरमू के गांव
देखा आये कुटकु के लोग को
देख आये दामोदर की तट को
की भेदी है हमने 
एक और इतिहास को।।

शनिवार, 24 मार्च 2018

मरांग बुरू

किसानो की मौत  से कंपा  मेरा मन 
aloka kujur 
साझी वलिदान की विरासत हो तूम
दहकती धरती की विरासत हो तुम
लाल माटी की चाहत हो तूम

पलाश के संग लाल माटी के रंग
रणभूमि गाँव की इफाजत हो तूम
सब के सब तेरे दामन मे 
समेटे रखे है ना मरांग बुरू
जब भी तडपती हूं 
थाम कर जब याद कर लेती
चारो ओर चीत्कार सुन लेती
कई कई बरस से अटूट विश्वास 
आज भी है मन मे
मैं खड़ी आज भी
मेरे विश्वास को नही 
ना तोडो़गे मरांग बुरू
शोषक सपने दिखाते है
विकास के धुल उडाते है
धुल मे गुम हो रहे किसान के जीव
चिड़िया कौएं इन बातों से 
छोड गये मेरे अँगना, मेरा खेत
पपडी पड़ गये खेतो मे
पानी दो गे ना मांरग बुरू
हर बरस आती हूँ
एक लोटा पानी लेकर
धरती की रक्षा की कामना मन मे लिए। 
इस कामना को पूरा करोगे 
मेरे खेतो को पानी दो गे ना मरांग बुरू

शिशिर दा (ओस की बुंद)




aloka 
तेरे शब्दकारो की बस्ती
में नही गूँजते 
कलमी साग, ठेपा साग 
के स्वाद के गीत।
बदल दिए न आपना राग
जहाँ से चले थे ,बदलने दुनिया
उस दुनिया मे चकोड के गीत सुने है क्या?
तेरे शब्दकरो की बस्ती में 
किसे बुला रखे है। 
देख रही मैं 
शिशिर बिहीन धरती 
लौटने का इंतजार बस कर रही

दा चले थे मडुवा बांध 
खो दिया न पूरी धरती से आज
निकाला था एक दिन 
पोटली में बंध
नही लौटा वो मड़वा
फिर कभी गाँव
लोग मानते है आज भी
एक दिन बदलेगी दुनिया 
और शिशिर पानी फिर भीगा देगी
मेरा आँगन मेरा ठाव