रविवार, 25 मार्च 2018

हीरामणी

आलोका कुजूर
 हीरामणि
हूल के पन्नों से ग़ायब हो
इतिहास के रास्ते तुमने भी चला था।
क्यो?
फुटकल के गाछ 
जब पूस में अपने को सजते 
रंग बदलती मौसम में
तेरा ओढकन्न कोसो दूर सघर्ष 
के रास्ते पर गाछ ही तो सहारा था।
हीरामणि तेरे शौर्य की गाथा 
ग़ायब कर दिए है
तेरे तीर कमान से निकलते थे
हूल
चारो घने जंगल में 
आग बन पसर जाते थे।
हमने देखी थी 
तेरी वीरता के जंग को
बैठ कारो के बहते धार में
जब निकलती थी झुंड
सरई के गांव से , नही जान पाया थी हीरामणि 
उस तीर की धार को
आज फिर इतिहास
पुकार रहा वीरता के गांव को
चलोगी हीरामणि हरमू के गांव
देखा आये कुटकु के लोग को
देख आये दामोदर की तट को
की भेदी है हमने 
एक और इतिहास को।।

1 टिप्पणी:

dilshadnazmi ने कहा…

अलोका जी, झारखंड की तारीख और साहित्य जब भो कोई लिखेगा तो मुझे नहीं लगता के लिखने वाला अलोका की कविताओं को फरामोश कर केआगे बढ पाए गा,,,, मुझे आप की कुछ एक कविताओं ने हैरत में डाला है,,झारखंड में मुझे आप के तेवर सा लिखने वाला अभी तक तो नज़र नही आया,बहोत बहोत बधाई,