किसानो की मौत से कंपा मेरा मन
aloka kujur
साझी वलिदान की विरासत हो तूम
दहकती धरती की विरासत हो तुम
लाल माटी की चाहत हो तूम
पलाश के संग लाल माटी के रंग
रणभूमि गाँव की इफाजत हो तूम
सब के सब तेरे दामन मे
समेटे रखे है ना मरांग बुरू
जब भी तडपती हूं
थाम कर जब याद कर लेती
चारो ओर चीत्कार सुन लेती
कई कई बरस से अटूट विश्वास
आज भी है मन मे
मैं खड़ी आज भी
मेरे विश्वास को नही
ना तोडो़गे मरांग बुरू
शोषक सपने दिखाते है
विकास के धुल उडाते है
धुल मे गुम हो रहे किसान के जीव
चिड़िया कौएं इन बातों से
छोड गये मेरे अँगना, मेरा खेत
पपडी पड़ गये खेतो मे
पानी दो गे ना मांरग बुरू
हर बरस आती हूँ
एक लोटा पानी लेकर
धरती की रक्षा की कामना मन मे लिए।
इस कामना को पूरा करोगे
मेरे खेतो को पानी दो गे ना मरांग बुरू
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