शनिवार, 24 मार्च 2018

शिशिर दा (ओस की बुंद)




aloka 
तेरे शब्दकारो की बस्ती
में नही गूँजते 
कलमी साग, ठेपा साग 
के स्वाद के गीत।
बदल दिए न आपना राग
जहाँ से चले थे ,बदलने दुनिया
उस दुनिया मे चकोड के गीत सुने है क्या?
तेरे शब्दकरो की बस्ती में 
किसे बुला रखे है। 
देख रही मैं 
शिशिर बिहीन धरती 
लौटने का इंतजार बस कर रही

दा चले थे मडुवा बांध 
खो दिया न पूरी धरती से आज
निकाला था एक दिन 
पोटली में बंध
नही लौटा वो मड़वा
फिर कभी गाँव
लोग मानते है आज भी
एक दिन बदलेगी दुनिया 
और शिशिर पानी फिर भीगा देगी
मेरा आँगन मेरा ठाव

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