बुधवार, 14 नवंबर 2018

तेरी यादों की कविता बनाऊँ (तीर्थ नाथ आकाश)

तेरी यादों की कविता बनाऊँ
उसे फिर मैं नए शब्दों से सजाऊँ
क्या लिखूं क्या ना लिखूं
तेरे साथ गुजारा हर पल कविता
उलझे सुलझे अल्फाज सारे
तू कुछ कह दे तो कविता

मुझसे बाते करते तेरा सो जाना
तेरी सांसे का उलझ जाना
सुबह आधी नींद में
मुझसे हल्की मुस्कान से बात करना
तेरा प्यार से कैसे हो कहना
इन सब बातों में बनती है कविता

मेरी वीरान जिंदगी थी
तू आई नया एहसास आया
जो कभी ना हुआ
जो कभी ना किया
कई बार कुछ नया कर पाया
तेरे मुझे मुस्कुरा कर देखना
मेरी हांथों को भरोसे से पकड़ना
गले लग मेरी पीठ थपथपाना
फिर यह कहते हुए चले जाना
की ख्याल रखो अपना
सुनों यह भी तो है कविता

गेंदा फूल की तरह तेरी खुशबू
उड़हुल फूल सी तेज तुममे
पंक्षी सी उड़ती हो तुम
कभी यहां कभी वहां
तितली सी कई रंग है तुममे
तुझे देख मैं भी सीखता हूं
मेरी जिद को तुमने संभाला
बन एक मजबूत चट्टान तुम
मेरी मुश्किलों से टकराती हो
मेरे दुखी होने पर
हर बार तेरा कहना तुम ठीक हो
बोलो तो क्या यह नहीं है कविता

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