बिरसा तुम्हें कहीं से भी आना होगा
घास काटती दराती हो या लकड़ी काटती कुल्हाड़ी
यहां-वहां से, पूरब-पश्चिम, उत्तर दक्षिण से
कहीं से भी आ मेरे बिरसा
खेतों की बयार बनकर
लोग तेरी बाट जोहते.
बिरसा मुंडा(जन्म: 15 नवंबर 1875 मृत्यु: 9 जून 1900) अमर रहे..
बिरसा का उलगुलान मात्र विद्रोह नहीं था. यह झारखंडी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था.
हालात आज भी वैसे ही हैं जैसे बिरसा मुंडा के वक्त थे. आदिवासी खदेड़े जा रहे हैं, गैर झारखंडी अब भी हैं. जंगलों के संसाधन तब भी असली दावेदारों के नहीं थे और न ही अब हैं.
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