बुधवार, 14 नवंबर 2018

तेरी दी हुई चादर ( तीर्थ नाथ आकाश)

तेरी दी हुई चादर
(मेरी कविता)

तेरी दी हुई वो चादर
तेरे होने का एहसास दिलाती है
तेरा मेरे माथे पर हांथ फेरना
तेरा मेरे कानों में कहना
मेरे हाथों को भरोसे से पकड़ना
हर बात याद दिलाती है 
तेरी दी हुई चादर

तेरी खुशबू है इसमें
मेरे पैरों को गुदगुदाती है
मेरे जीवन के हर कांटे को
गुलमोहर बनाती है
तू साथ है हर वक्त
तेरे स्पर्श को ताजा करती है
तेरी दी हुई चादर

मैं तुमसे दूर नहीं रह पाता
जीवन का एक पल भी
सोच नहीं पाता
तुमसे जुदा होने का सोच कर
मैं उदास हो जाता हूं
जीवन के हर संघर्ष से
लड़ कर - थक कर
जब घर आता हूं
अपने बिस्तर पर जाता हूं
तब मेरी थकान भगाती है
तेरी दी हुई चादर

सुनो ना गलती हो जाती है
मैं भी इंसान हूं
हर बार सही नहीं हो पाता हूं
जब हांथ पकड़ती हो मेरा
तो लगता है तुम ही जिंदगी हो
जब साथ चलती हो मेरे 
तो लगता है बस तुम ही हो
आगोश में तेरे खोना चाहता हूं
तुझे आगोश में रखना चाहता हूं
जब मैं कभी टूटता हूं या
बिखरने लगता हूं तो
मुझे समेट लेती है
तेरी दी हुई चादर

कोई टिप्पणी नहीं: