सोमवार, 26 जुलाई 2010

प्रियतम

इतवा मुंडा

शादी के रास्ते में बिछड़ गये

कमर हिला के चली थे तुम

बेनी गांठे हुए चमक रही थी

देखकर मोहित हुवा प्रियतम

मेरा मन तुमको पसंद किया

दिल के अन्दर खुशिया भर आई

मेरे चरणों को तुम धोई

जीवन साथी बनाने के लिए पर

मुर्गे की तरह प्रियतम तुमने

लात मर कर भगा दिए हमे
,

सीने के अन्दर मेरा प्राण जा रहा है
,

हमने लेबेद गांव गए थे, तो ,

तुम लकड़ी लेन के बहाने जंगल गई

प्यारी माँ ने मरे
पांव को धोये

सीने के अन्दर मेरे प्राण उड़ गया,

तुम्हे रत में सपनी में देखता हु,

दिन में तेरी याद में डूबा रहता हु,

खाना पीना छोड़ दिया हु,

पागल की तरह घूम रहा हु,

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार