इतवा मुंडा
शादी के रास्ते में बिछड़ गये
कमर हिला के चली थे तुम
बेनी गांठे हुए चमक रही थी
देखकर मोहित हुवा प्रियतम
मेरा मन तुमको पसंद किया
दिल के अन्दर खुशिया भर आई
मेरे चरणों को तुम धोई
जीवन साथी बनाने के लिए पर
मुर्गे की तरह प्रियतम तुमने
लात मर कर भगा दिए हमे
,
सीने के अन्दर मेरा प्राण जा रहा है
,
हमने लेबेद गांव गए थे, तो ,
तुम लकड़ी लेन के बहाने जंगल गई
प्यारी माँ ने मरे
पांव को धोये
सीने के अन्दर मेरे प्राण उड़ गया,
तुम्हे रत में सपनी में देखता हु,
दिन में तेरी याद में डूबा रहता हु,
खाना पीना छोड़ दिया हु,
पागल की तरह घूम रहा हु,
1 टिप्पणी:
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
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