शनिवार, 17 जुलाई 2010

ये लम्हा बीता मेरा

.अलोका
29.06.10

चली थी, मन में
लिए गुस्सा और प्यार दोनो
तब तक
जब तक
न देखी थी मैं तुझे
न थी मन में चाहत उस वक्त तक
.रखी थी सोच कर दिल में
.न मिलूंगी तूझसे

जाने अनजाने
. हो गयी मुलाकात
. किसी मोड़ पर
. थम गया था दिल मेरा
. कुछ देर तक
. और फिर
. मिलने की चाहत दिल को तड़पाने लगी
. वो दिन एहसास
. एक -एक पल
. मेरे लिए थम सा गया।
. बिना सोचे चल दी
. पर
. मेरी निगाहे पूरे रास्ते
. तुझे तला”ाती रही।
. आंखों की तला”ाी के साथ
. दिल बेवाक् बैचन हो गया।
. आपने साथ के साथी के रास्ते
. भी खो दिया
. मन की बैचनी को थामने
. चली गयी उस देहरी तक
. जहां एक सनाटा भरा था।
. निरा”ा निगाहे
. व
. वापसी कदम
. देहरी पार करते ही
. उसका फोन आया
. इंतजार तो कर ले-की बात कह डाला।
. मै इस इतजांत को पल पल जी रही थी।
. उनसे मिलने की तड़प बढ़ रही थी।
. नहीं पता कि उस ओर मैं खींचे
. क्यों जा रही थी?

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