दामिनी-ई-कोह
रिची बुरु
बुधवार, 14 नवंबर 2018
तन माटी (तीर्थ नाथ आकाश)
तन माटी
तन काया
इस धरती पर
सब मेहमान
कोई पहले जाता
कोई थोड़े बाद
बस यादें रह जाती है
सब यहीं छूट जाता
जाता कुछ भी नहीं
सब जल माटी हो जाता.
मेरी दादी का देहांत हो गया.
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