शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

शाम (Aloka Kujur)

आज की शाम मेरे लिए अनोखा रहा।
किरण का सो जाना मेरे लिए सुकून रहा।
लौटती भीड मे खोया मन मेरे लिए आनमोल रहा।
मुस्कुराते चांद के साथ एक पल और रहा।
आंगन मे चांद का महकना कुछ और रहा।
ह्मदय मे हवा का एहसास कुछ और रहा।

जीवन मे हर शाम कुछ कहता रहा
दीया लिये भाभी अगली मनत को तैयार रही।
शोर इतना की मनते से बडी डीमांड हुई
शाम की चाय का नजारा ही कुछ और रहा।
पलको मे यादे थी शमा को ओर बंध रहा।
जल रही है बाती घरो मे छाया कोई ओर रहा।
पल भर की तन्हाई और खो जाता ये जमाना रहा।

शाम के इस पहरे दार से जमाने से कह रहा।
हाथो मे लिए चल रहे है मन की कौन सुन रहा।
जहाँ मे शाम एकलौता है देखो कौन इसे बांट रहा।
बादल रौशन है आज कि
 कल कुछ नाराजगी कुछ और रहा।

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