तूफ़ानों की हिम्मत आँधी का रुतबा देखा,
काँप गया जब मौसम का असली चेहरा देखा.
सूरज, चाँद, सितारे अँधियारों के क़्ब्ज़े में,
क्या हमने इस आज़ादी का ही सपना देखा.
मुझको हर पत्थर में अपना अक्स नज़र आया
हर पत्थर में जब मैं ने एक आईना देखा.
मेरे अधिकारोंवाले पैरे ही ग़ायब हैं,
संविधान का ध्यान से मैं ने हर पन्ना देखा.
सारी नैकताएं शोकेसों में बंद मिलीं,
ऊँचे-ऊँचे गेटोंवाला जो बंगला देखा.
अपराधी संसद के भीतर कैसे पहुँच गये,
जनता ने भी इन में आखिर ऐसा क्या देखा.
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