अरुणा शर्मा
जाने क्या कहा
मुझसे इशारों में
तुम्हारी आखों नें,
कोई अनसुलझी
सी पहेली थी
या, मेरा ही
प्रतिबिम्ब था
जो ठहर गया था
तुम्हारी आखों में,
नहीं, मैं नहीं
जान पाई कभी
क्यॊंकि
तुम सदा ही
नजरे चुरा कर
चले जाते,
और मैं तुम्हारी
आंखों की
गहराई में
खोजती ही रह जाती
अपने होने का
अहसास.........
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