रविवार, 28 अप्रैल 2013

पता नहीं तुम कैसे पीते हो



पता नहीं तुम कैसे पीते हो
कि सूख जाती हैं नदियां
गायब हो जाते हैं ताल-तलैया
बादल गुम हो जाते हैं
और तरसती रहती है सुबह
बूंद-बूंद ओस के लिए
हम ऐसे पीते हैं
फिर भी बहता रहता है दरिया
भरे रहते हैं समंदर
पता नहीं तुम कैसे पीते हो
कि सूख जाती हैं नदियां
गायब हो जाते हैं ताल-तलैया
बादल गुम हो जाते हैं
और तरसती रहती है सुबह
बूंद-बूंद ओस के लिए

Ken River in Banda / Bundelkhand....Month November 2012
courtesy : आस्था या नदियों को मारने की साजिश ?

कोई टिप्पणी नहीं: