झरते हुए पत्तों को ---
रास्ते किधर जाते ..... मालूम कहाँ !
एक जनून ---
कि ,
छाँव किधर ...
धूप किधर ...
पागल पवन उड़ता किधर ...होश कहाँ !
पराजित
हरे -हरे ख़्वाब ....
पीले बदन चरमराते ... उड़ते जाते
जाने कहाँ !
झरते हुए पत्तों को
रास्ते किधर जाते मालूम कहाँ !
छूटते हुए पलों को
आँचल में बाँध ... अम्बर तक फैला दूं
हरियाली लौटा दूं
ये हुनर मुझमें कहाँ !
निराकार ....
ओ अनीश्वर ....
मौसम के जादूगर !
मैं ढूँढती तुझे ......... तू कहाँ !
कि .
झरते हुए पत्तों को ---
रास्ते किधर जाते .....मालूम कहाँ !
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