अरुणा शर्मा
परिभाषा देते तुम
सिर्फ दैहिक प्रेम की,
किंतु प्रिय,
प्रेम होता
हर देह से पार,
कितने पुराण रचे
कितने रचे
ग्रंथ ज्ञानियों ने
नहीं लिख पाये
वो भी प्रेम के
मर्म हजार,
ब्रह्मांड के
अंनत विस्तार तक
प्रेम ने फैलाई
अपनी बांहे
सब आमंत्रित
इसके दर पर
आओ चाहे
किसी प्रकार.........
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