मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

सुनो, सुनाऊं, तुमको मैं इक, मोहक प्रेम कहानी,



सुनो, सुनाऊं, तुमको मैं इक, मोहक प्रेम कहानी, 
सागर से मिलने की खातिर, नदिया हुई दीवानी ...

कल कल करती, जरा न डरती, झटपट दौड़ी जाती, 
कितने ही तूफ़ान समेटे, सरपट दौड़ी जाती, 
नई डगर है, नया सफ़र है, फिर भी चल पड़ी है, 
तटबंधों को साथ लिए वो, धुन में निकल पड़ी है, 
शिलाओं ने रोका बहुत पर, उसने हार न मानी।। 
सागर से मिलने ...... 

सागर की लहरों ने पूछा, हम में मिल क्या पाओगी, 
मिट जायेगा नाम तुम्हारा, खारा जल कहलाओगी, 
नदिया बोली तुम क्या जानो, प्रेम लगन क्या होती है, 
खुद को खो कर प्रिय को पाना, प्रेम की नियति होती है।। 
जरा न बदली चाल नदी की , बदली नहीं रवानी .... 
सागर से मिलने ...... 

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