रविवार, 28 अप्रैल 2013

मुश्किल है अपना मेल प्रिये



बहुत कुछ कहती है, यह कविता.. जिनको कहती है वह सुन ही लेंगे...कभी कभी कुछ ऐसा भी..

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम एम.ए. फर्स्टर डिवीजन हो
मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम फौजी अफसर की बेटी
मैं तो किसान का बेटा हूं
तुम रबडी खीर मलाई हो
मैं तो सत्तू सपरेटा हूं
तुम ए.सी. घर में रहती हो
मैं पेड. के नीचे लेटा हूं
तुम नई मारूति लगती हो
मैं स्कूमटर लम्ब्रे टा हूं
इस तरह अगर हम छुप छुप कर
आपस में प्यामर बढाएंगे
तो एक रोज तेरे डैडी
अमरीश पुरी बन जाएंगे
सब हड्डी पसली तोड. मुझे
भिजवा देंगे वो जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

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