शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है


इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

अभी जिन्दा है माँ मेरी , मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई खवाब में आ जाती है

ऐ अँधेरे देख ले मुहं तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया

लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती

'मुनव्वर' माँ के आगे यूं कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

किसी के हिस्से घर किसी के हिस्से में दुकां आयी
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आयी

यूं तो जिन्दगी में बुलंदियों का मकाम छूआ
माँ ने जब गोद में लिया तो आसमान छूआ

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