बुधवार, 10 अप्रैल 2013

थोड़ा सा ईमान



अशोक रावत की ग़ज़लें

एक दिन मजबूरियाँ अपनी गिना देगा मुझे,
जानता हूँ वो कहाँ जाकर दग़ा देगा मुझे.

इस तरह ज़ाहिर करेगा मुझ पे अपनी चाहतें,
वो ज़माने से ख़फ़ा होगा सज़ा देगा मुझे.

वो दिया हूँ मैं जिसे आँधी बुझाएगी ज़रूर,
पर यहाँ कोई न कोई फिर जला देगा मुझे.

आँधियाँ ले जायेंगी सब कुछ उड़ा कर एक दिन,
वक़्त फिर भी चुप रहूँ ये मश्वरा देगा मुझे.

सिर्फ़ मुझको हार के डर ही दिखाए जायेंगे,
या कि कोई जीत का भी हौसला देगा मुझे.

हर क़दम पर ठोकरें हर मोड़ पर मायूसियाँ,
ऐ ज़माने और कितनी यातना देगा मुझे.

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