सोमवार, 25 मार्च 2013

ऐ मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया


ऐ मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया 
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया 

यूँ तो हर शाम उम्मीदों पे गुज़र जाती थी 
आज कुछ बात है , जो शाम पे रोना आया 

कभी तक़दीर का मातम , कभी दुनिया का गिला 
मंजिले-इश्क़ के हर कदम पे रोना आया 

मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला -ए-नौहागरी
इस कदर गर्दिशे-अय्याम पे रोना आया 

जब हुआ जिक्र ज़माने में मुहब्बत का शकील 
मुझको अपने दिले-नाकाम पे रोना आया ........शकील बदायूनी


सिलसिला-ए-नौहागरी---विलाप का सिलसिला 
गर्दिशे-अय्याम ---समय का चक्र

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