'' वियोगी होगा पहला कवि ...आह से उपजा होगा गान .''...सुमित्रा नंदन जी की अमर कृति से उपजे कुछ भाव .....
'' अब कैसे कोई गीत बने ''
-------संध्या सिंह
शब्दों का झरना लुप्त हुआ
भावों का दरिया सुप्त हुआ
जब कलम रेत में ठूंठ हुई
अब कैसे कोई गीत बने .....
बेचैन करे फिर व्यथा कोई
रोके ड्योढी पर प्रथा कोई
या घुटे सांस दीवारों में
अनकही रहे फिर कथा कोई
जो कसे बेडियाँ पैरों में
फिर कट्टर कोई रीत बने
तब शायद कोई गीत बने ....
फिर पंख परिंदे का टूटे
या बीच राह मंजिल छूटे
पूरा घट जिसको सौंप दिया
वो बूँद बूँद जीवन लूटे
फिर कोई खंडित स्वप्न दिखे
या एक अधूरी प्रीत बने
तब शायद कोई गीत बने .....
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