सोमवार, 25 मार्च 2013

नहीं उनको हमारी फ़िक्र न है उल्फ़त ज़रा हम से

आज मन कई कारणों से बहुत दुखी है, ऐसे में एक पुरानी ग़ज़ल याद आ गयी--

Neelabh Ashk

नहीं उनको हमारी फ़िक्र न है उल्फ़त ज़रा हम से
भला तस्कीन दिल को अब अगर्चे हो तो क्योंकर हो

मिले हैं ज़ख़्म जो उनसे दिखायें किसको ऐ यारब
दबा लें चीख़ जिगरा इस तरह का हो तो क्योंकर हो

सदा अपनी हमेशा उनके दर से लौट आयी है
रसाई उन तलक तकलीफ़ की फिर हो तो क्योंकर हो

हमें मत छेडि़ए हम हैं ज़माने के सताये शख़्स
हमारी बेबसी पे रहम उनको हो तो क्योंकर हो

नहीं हैं दो ज़बानें और दिल भी दो नहीं अपने
उन्हें एतबार इस पे ऐ ख़ुदाया हो तो क्योंकर हो

कहो नीलाभ अब भी हसरतें बाक़ी हैं कुछ दिल में
मगर पूरी अगर हो एक भी उनमें तो क्योंकर हो।

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