सर झुकाने उसकी चौखट पर मैं रोज़ाना गया,
ये अलग किस्सा है क़ाफ़िर क्यों मुझे माना गया.
अब किसी की फ़िक्र में ये बात शामिल ही नहीं,
नाम जाना भी गया तो किस लिये जाना गया.
जो हमारी जान थी, पहचान थी, ईमान थी,
आज उस तहज़ीब का हा एक पैमना गया.
क़ातिलों का पक्ष सुन कर ही अदालत उठ गई,
बेगुनाहों की गवाही को कहाँ माना गया.
उनकी हाँ में हाँ मिलाना मुझको नामंज़ूर था
मेरे सीने पर तमंचा इसलिये ताना गया.
मैं किसी पहचान में आऊँ न आऊँ ग़म नहीं,
मेरी ग़ज़लों को तो दुनिया भर में पहचाना गया.
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