थोड़ा सा ईमान
अशोक रावत की ग़ज़लें
अब भरोसा ही नहीं होता किसी के नाम पर,
दुश्मनी के सिलसिले हैं, दोस्ती के नाम पर.
आज़मा कर देखे हैं हर नस्ल के हमने चिराग़,
पर अँधेरा ही मिला है रौशनी के नाम पर.
आरती का शब्द उनमें एक भी शामिल नहीं,
हमने जो ध्वनियॉं सुनी हैं आरती के नाम पर.
जोड़ कर तो देखिए अब चार इज़्ज़तदार लोग,
आप तुलसी, सूर, मीरा, जायसी के नाम पर.
एक दिन मेयर बनेगा देखिए, ये आदमी,
क़त्ल का इल्ज़ाम है जिस आदमी के नाम पर.
कुछ पुलिसवालों ने मिलके लूट ली बस्ती मेरी,
पर शिकायत दर्ज़ है ये चौधरी के नाम पर.
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