मंगलवार, 26 मार्च 2013

एक मानव



तंग आकर
‘’ाराब का हो गया आदी
लोग
कहने लगे घर में इसके छा गई बरबादी
मानव!
च्ुाप था
पर था
बोलने को आतुर
बोला - क्या यही है आजादी?
व हजारों गलियां
सुनकर चुप था।
चुप हुआ बस
पूरा मानव समूह
चुप!
चुप्पी का राज
पर
मन मस्तिष्क
चुप कहां रहने वाला था
सल्फास की गोलियां
बनी उसकी
आवाज
द्वन्द को
दर्’ााया
उसकर मौत ’ौया
डाॅक्टर!
जे समस्याओं का
ळल ढूंढते है
पोस्टमार्टन में
उस मानव को
लाया
पोस्टमार्टम कक्ष में
चीरा लगाया डोम ने
चीखता- चिल्लाता
भागा
धमाके की डर से
दुबारा डोम
डाॅक्टरों के साथ गया डरते- डरते चीरा लगाया प्र मरे ‘’ारीर मे
उग आये थें
दिमाग
उग आई थीं
आखें
उग आये थे
कान..! नाक...!
अंग- अंग
में जीभ....
संवेदनाओं से भरी
ला’ा
जो बोल नही सका था
कह गया, बता गया
अनसुलझे प्र’नों का उतर
धमाका! धमाका!!
और सिर्फ धमाका!!!

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