शनिवार, 30 मार्च 2013

मुझे बांझ कहती है सास मेरी



मुझे बांझ कहती है सास मेरी
और मेरी ननद ब्रजवासिन पुकारती है
जो लाया ब्‍याह कर उसने घर से निकाल दिया
वन में
घनघोर वन में अकेली खड़ी हूं मैं

ऐ बाघिन
अनंत असह दु:ख हैं मेरे
खा जाओ मुझे
कर दो मेरी पीड़ा अंत

जाओ, लौट जाओ उस घर
वही है आश्रय तुम्‍हारा
दु:ख हों या सुख
मैंने अगर खा लिया तुम्‍हें तो
बांझ हो जाऊंगी मैं भी

ऐ नागिन, 
डंसो मुझे
विष तुम्‍हारा अमृत बनेगा मेरे लिए
मुक्‍ति मिलेगी मुझे

जाओ, लौट जाओ उस घर
वहीं करो तप
तीर्थ वही है तुम्‍हारा
मैंने अगर डंस लिया तुम्‍हें
बांझ हो जाऊंगी मैं भी

ऐ भूमि...मां हो तुम
अपनी गोद दो मुझे
फटो कि समा जाऊं
छिप जाऊं तुम्‍हारे गर्भ में
शरण दो मां

नहीं बेटी,
लौट जाओ अपने पति के घर
मैं नहीं दे सकती आश्रय
न गोद
न गर्भ
अगर दिया यह सब तुम्‍हें 
बंजर हो जाऊंगी मैं
जाओ, लौट जाओ....
(एक भोजपुरी लोकगीत की पुनर्रचना)

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