'एक और मृत्यु ''
-संध्या सिंह
तुम भी तिल तिल मर रहे थे
और मैं भी ,
तुम भी जीवन ढूंढ रहे थे
और मैं भी |
सोचा ...
प्रेम के धागे से फटे घाव सियेंगे
और ....
एक दूजे में जियेंगे
मगर ....
तुम्हे स्वछंदता चाहिए थी
मुझे विश्वास ,
मुझे समंदर चाहिए था
तुम्हे आकाश |
मैं मछली थी
और तुम परिंदा ,
इस साथ रहने की जिद में
कोई एक ही रह पाता
ज़िंदा ........!!!!
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