अशोक रावत की ग़ज़लें
छोटी छोटी बातों पर दंगा हो जाता है,
जाने बस्तीवालों को भी क्या हो जाता है.
एक माँस का टुकड़ा मिलता है मंदिर के पास,
और हमारी बस्ती में बलवा हो जाता है.
पांच बजे हो जाते हैं घर के दरवाज़े बंद,
सात बजे सड़कों पर सन्नाट्टा हो जाता है.
पावों की जूती हो जाते हैं सारे क़ानून,
राजनीति में कालाधन चंदा हो जाता है.
चौथ बसूलो, हफ़्ता दो,जी भर के मौज करो,
पकड़ा भी जाये तो कोई क्या हो जाता है.
मैं आदर्शों पर चलने की बातें करता हूँ,
मेरा अक्सर लोगों से झगड़ा हो जाता है.
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