शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

छोड़ द्रुमो की मृदु छाया

Brajesh Kumar

गंगा किनारे सैर करते हुए सुबह की ताजी, शीतल हवा का नंगी बाहों पर स्पर्श उतना ही सुखद लग रहा था जितना किसी आत्मीय के स्नेहिल हाथों का स्पर्श .... पंत याद आए--


छोड़ द्रुमो की मृदु छाया

तोड़ प्रकृति से माया
बाले, तेरे बाल-जाल में
कैसे उलझा दूं मैं लोचन...

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