न के बिजली कौंध जाओ हत्यारे की आंखों में
राख कर दो रौशनी को...
तुम जो साथ देते नहीं
तुम्हें भ्ाी शामिल माना जाए मेरी हत्या में....
तुम जो हर बार कटघरे में खड़ा करते हो मुझे ही
माना जाए कि तुम भी अपराधी हो....
माना जाए
कि
तुम्हारी भी सहमति है
हत्या और बलात्कार में.....।
2.
तुम्हारी भी सांसों से आती है खूनी गंध...
तुम्हारे कपड़ों पर हैं मेरे रक्त की छींटें....
तुम्हारी पीठ पर मेरे संघर्षों के निशान...
तुम न भीष्म हो न द्रोण....
अपनी ही हार से झुंझलाए
परास्त योद्धा हो ....
याद रखो
अट्ठारह दिनों में चुकेगा तुम्हारा भी हिसाब....
समय के धुरी पर लौटते ही....
याद रखो
लौटेगें वो अट्ठारह दिन
अौर
होगा तुम्हारा भी हिसाब.....।
21.07.14
अनुजा
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