रविवार, 27 जुलाई 2014

आसान नहीं होता

जिंदगी जीना  आसान नहीं होता 

बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता 

जब तक न पड़े हथौड़ी की मार

तब तक पत्थर भी भगवान नही होता । 

शनिवार, 26 जुलाई 2014

तेरी रुशवाइयों के बाद होश आया

vinay bharat 

तेरी रुशवाइयों के बाद होश आया
तेरे बहुत करीब खड़ा था मैं

जब चोट लगा दिल में मेरे

यूँ बेहोश सरे बाज़ार पड़ा था मैं


तुझसे वफ़ा की उम्मीद भी न थी
सहम सहम के प्यार करते रहा मैं

सुना था मोहब्बत बड़े काम की चीज
इंसान से देवता बन बैठा था मैं

कई रंगीनियाँ आती - जाती रहीं
तेरे एक प्यार में ठुकराता रहा मैं

अब जब तुमने भी ठोकर दे दी मुझे
क्या गया,क्या बचा -सोचता हूँ मैं!!

just यूँ ही लिखा है : ) आगामी 'कतरन' के लिए!

आज एक गीत का अंश .....

 संध्या सिंह
आज एक गीत का अंश .....
जब आँखों में घन गहराए
बरखा का अंदेसा छाये


मुस्कानों के दीप जलाऊँ 

अधरों की देहरी पर
जब सपनों पर लगे फफूंदी
जीवन में चौमासा आये
जब पीड़ा के अंकुर पनपें
उत्सव पर सीलन आ जाए
तब उठ कर बिन सूरज के ही
तम के श्यामपट्ट पर लिख दूँ
उजियारे के अक्षर
मुस्कानों के दीप जलाऊँ
अधरों की देहरी पर

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

तेरे दिल तक मेरे दिल की बात पहुँचे,

ब्रजेश


तेरे दिल तक मेरे दिल की बात पहुँचे,

कुछ जबाबात पहुचे, कुछ सवालात पहुँचे.

तेरे हिज्र में बहुत रूलाती हैं रातें ,
मेरे आँसुओं से भींगी बरसात पहुँचे.

नाम तेरा जबां पर,नज़र में तस्वीर तेरी,
मेरा अक्स तुम तक पहुँचे,मेरे हालात पहुँचे.

तेरे बगैर जीने का, रहा ना कोई मतलब,
मेरी बेबसी पहुँचे, मेरे ख्यालात पहुँचे.

चलो आसमान के पार भी है, जहाँ कोई,
हम पहुँचे,तुम पहुँचो,तारों की बारात पहुँचे.

छोड़ द्रुमो की मृदु छाया

Brajesh Kumar

गंगा किनारे सैर करते हुए सुबह की ताजी, शीतल हवा का नंगी बाहों पर स्पर्श उतना ही सुखद लग रहा था जितना किसी आत्मीय के स्नेहिल हाथों का स्पर्श .... पंत याद आए--


छोड़ द्रुमो की मृदु छाया

तोड़ प्रकृति से माया
बाले, तेरे बाल-जाल में
कैसे उलझा दूं मैं लोचन...

जब हम प्रेम में होते हैं


ब्रजेश

16/03/2013

जब हम प्रेम में होते हैं,
पूरी दुनिया से रूबरू होते हैं

सजग हो जाती हैं जिहवा पर स्वाद कलिकाएँ 
बढ़ जाता है जीवन का आस्वाद
त्वचा पर उग आते हैं संवेदनशील संस्पर्शक
सारे गंधों को ग्रहण करती है हमारी नासा पुट
सारा शोर-शराबा, जीवन का संगीत बन,
बजता है कानों में-

जब हम प्रेम में होते हैं,
रोकते हैं शरीर बच्चे को,
आवारा कुत्तों पर पत्थर फेकने से
गर्दन झुका ,बंद आँखों से
बड़े अदब से देते हैं विदाई
अंतिम यात्रा पर जा रहे सहयात्री को.
जब हम प्रेम में होते हैं,
रोप देते हैं गुलाब का एक विरवा.

जब हम प्रेम में होते हैं,
स्कूल जा रहे छोटे बच्चों के माथे पर रखते हैं आश्वस्ति भरा हाथ
जब हम प्रेम में होते हैं,
हमारे पास समय होता है कविताओं को पढ़ने का
प्रकृति के सौन्द्र्य को निहारने का
अलग-अलग फूलों के रंगो को विचारने का
जब हम प्रेम में होते हैं,
सुबह का स्वागत करते हैं मुस्कुराकर
और ईश्वर को धन्यवाद देते हैं इस जीवन के लिए

जब हम प्रेम में होते हैं,
खुले आसमान के नीचे विचरते हैं
और,चाँद-तारों से करते हैं दिल की बात
जब हम प्रेम में होते हैं,
अख़बारों के स्याह खबरों से होते हैं दुखी
हिन्दी फिल्मों का भला किरदार
होठों पर मुस्कुराहट और आँखों में ला देता है नमी
शाहरुख ख़ान के संग गाते हैं-
तुझे देखा तो ये जाना सनम
और महरूम रफ़ी साहब की मखमली आवाज़ के साथ मिलाते हैंअपनी आवाज़ -
तेरी आँखो केसिवा दुनिया में रखा क्या है.

जब हम प्रेम में होते हैं,
माँ को भर लाते हैं अंक मेंऔर
जताते हैं थोडा अतिरिक्त प्यार
आईने को करते हैं विवश,
ढीठ की तरह खड़े रहते हैं सामने
जब तक वह यह ना कह दे
चलो, काफ़ी है आज के लिए

जब हम प्रेम में होते हैं,
हो जाते हैं सदय
और अपनी गाड़ी को टक्कर मारने वाले को भी
पीछे मुड़कर,
देखते हैं मुस्कुराकर
और ज़ुबान बच जाती है गंदी हो जाने से

जब हम प्रेम में होते हैं,
शब्दों का टोटा हो जाता है ख़त्म
हम हो जाते हैं बातुनी

जब हम प्रेम में होते हैं,
अपनी हथेलियों पर लिखते हैं, मिटाते हैं
दुनिया की सबसे हसीन लड़की का नाम
जब हम प्रेम में होते हैं,अकारण ही जुड़ जाती हैं हथेलिया
दुनिया की तमाम इबादतगाहों में की जा रही प्रार्थनाओं के लिए

जब हम प्रेम में होते हैं,
सुलझ जाती है ब्रह्मांड की सबसे रहस्यमयी गुत्थी
आख़िरकार, जीवन का मकसद क्या है?
जब हम प्रेम में होते हैं,धरती बन जाती है अपनी देह
और ईष्ट हो जाता है आसमान।

रास्ते मुझे पहले भी मुझे याद नहीं रहते थे


.ब्रजेश (munger se )


रास्ते मुझे पहले भी मुझे याद नहीं रहते थे.
रास्ते अब भी मुझे याद नहीं रहते.
.................................................

वर्षों पहले किसी ने मुझे अपने घर का रास्ता बताया था.
एक अर्थपूर्ण मुस्कुराहट को मैने होठों पर आने से रोक दिया था...
चलो, कोई रास्ता दिखाने वाला तो मिला,
और, रास्ते का भी पता चला.
शायद मंज़िल का भी.
' महाजनो येन गतः स पंथा' की तरह, सोचा-
अब तो, रास्ता वही है जो तुम्हारे घर तक पहुँचे.

.....................................................
मैं अब भी बेवजह उस रास्ते से गुजरता हूँ-
जो तुम्हारे घर तक पहुँचता है.
यह जानते हुए भी कि अब उस घर में तुम नहीं हो.
लेकिन अब भी याद है
बचपन में रटे गये संस्कृत के श्लोकों की तरह,
रास्ता वही है जो तुम्हारे घर तक जाता है.

.........................................................
वर्षों बाद ...
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ-
कितने ही लंबे रास्ते तय किए मैने अब तक,
पर,सब के सब तकरीबन भटकते हुए,
मंज़िल से अनजान.....

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

रीढ़ की हड्डी (-- Bhavna Mishra)


----------------
छील डालना उसे आख़िरी परत तक
रोजाना अपने
छोटे छोटे अनवरत प्रहारों से, 
जो एक बार में तोड़ न सको
किसी स्वाभिमानी स्त्री की
रीढ़ की हड्डी !
समाज ने तुम्हें किया है पारंगत इस कला में
कि रिश्तों की छेनी के आलम्ब पर
बेदर्दी से चलाये जाओ अपने अधिकारों की हथौड़ी.
हाँ, तुम रत रहो अपने इस महान उद्देश्य में..
ये मूर्ख औरतें कभी न समझ सकेंगीं
कि इस दुनिया का हर पुरुष एक महान कलाकार है
जो निरंतर गढ़ रहा है
अपने संबंधों की परिधि में
आने वाली प्रत्येक स्त्री को !

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

न के बिजली कौंध जाओ हत्‍यारे की आंखों में ( Anuja)


न के बिजली कौंध जाओ हत्‍यारे की आंखों में
राख कर दो रौशनी को...

तुम जो साथ देते नहीं
तुम्‍हें भ्‍ाी शामिल माना जाए मेरी हत्‍या में....

तुम जो हर बार कटघरे में खड़ा करते हो मुझे ही
माना जाए कि तुम भी अपराधी हो....

माना जाए
कि
तुम्‍हारी भी सहमति है
हत्‍या और बलात्‍कार में.....।
2.
तुम्‍हारी भी सांसों से आती है खूनी गंध...
तुम्‍हारे कपड़ों पर हैं मेरे रक्‍त की छींटें....
तुम्‍हारी पीठ पर मेरे संघर्षों के निशान...
तुम न भीष्‍म हो न द्रोण....
अपनी ही हार से झुंझलाए
परास्‍त योद्धा हो ....
याद रखो
अट्ठारह दिनों में चुकेगा तुम्‍हारा भी हिसाब....
समय के धुरी पर लौटते ही....
याद रखो
लौटेगें वो अट्ठारह दिन
अौर
होगा तुम्‍हारा भी हिसाब.....।
21.07.14
अनुजा

सोमवार, 21 जुलाई 2014

पीयूष मिश्रा का एक गीत : मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका (’जानकी पुल’ से साभार)



मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
ख़ूब जाना चाहता हूँ अमेरिका
पी जाना चाहता हूँ अमेरिका मैं
खा जाना चाहता हूँ अमेरिका
...क्या क्या क्या है अमेरिका रे बोलो
क्या क्या क्या है अमेरिका
बस ख़ामख़्वाह है अमेरिका रे बोलो
बस ख़ामख़्वाह है अमेरिका
...सोने की खान है अमेरिका
गोरी-गोरी रान है अमेरिका
मेरा अरमान है अमेरिका रे
हाय मेरी जान है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ...

...अमरीका में ऐसे क्या-क्या हीरे-मोती जड़े हुए
देखो उसके फुटपाथों पर कितने भूखे पड़े हुए
जिधर उसे दिखती गुंजाइश वहीं-वहीं घुस जाता है
सबकी छाती पर मूँगों को दलना उसको आता है
अमरीका है क्या...कद्दू
अमरीका है क्या...बदबू
अमरीका है क्या ...टिंडा
अमरीका है...मुछमुण्डा
अब भी सँभल जाइए हज़रत मान हमारी बात
कि घुसपैठी है अमेरिका
बन्द कैंची है अमेरिका
बाप को अपने ना छोड़े
ऐसा वहशी है अमेरिका
...मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
आपको क्या मालूम जगह है वो क्या मीठी-मीठी-सी
...नंगी पिण्डली देख के मन में जले है तेज़ अँगीठी-सी
बड़े-बड़े है फ्लाईओवर और बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें वहाँ
बड़े-बड़े हीरो-हिरोइन बड़े-बड़े एक्टिंगें वहाँ
जहाँ भी चाहो घूमो मस्ती में कोई ना रोके है
पड़े रहो तुम मौला बनकर कोई भी ना टोके है
इसीलिए चल पड़िए मेरे कहता हूँ मैं साथ
कि रॉल्सरॉइस है अमेरिका
मेरी ख़्वाहिश है अमरीका
फ़रमाइश है अमेरिका रे मेरी
गुंजाइश है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
...अमरीका की बात कही तो ख़ूब मटक गए वाह वाह वाह
ये भूले कि वहाँ गए तो ख़तम भटक गए वाह वाह वाह
क्या-क्या है उसके कूचे में जो है नहीं हमारे में
बात करे हमसे कुव्वत इतनी भी नहीं बेचारे में
हम बतलाएँगे उसको ज़िन्दादिल कैसे होते हैं
सबकी सोचें महक-महक कर वो दिल कैसे होते हैं
इक बन्दा है वहाँ पे जिसका नाम जॉर्ज बुश होता है
छोटे बच्चों पर जो फेंके बम तो वो ख़ुश होता है
ऐसे मुलुक में जा करके क्या-क्या कर पाएँगे जनाब
जहाँ पे चमड़ी के रंग से इंसाँ का होता है हिसाब
इसीलिए हम कहते हैं आली जनाब ये बात
कि हिरोशिमा है अमेरिका
नागासाकी है अमेरिका
वियतनाम के कहर के बाद अब
क्या बाक़ी है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
...ये तो फरमा दिया आपने अमरीका क्या होता है
पर रहती हैं आप जहाँ पे वहाँ पे क्या-क्या होता है
इक रहता है बन्दा जिसकी ज़ात और कुछ होती है
क़ौम-परस्ती देख के उसकी तकलीफ़ें ख़ुश होती हैं
वो फिरता है यहाँ-वहाँ ये आस लिए कि पहचानो
मुझको भी इस वतन का हिस्सा वतन का टुकड़ा ही मानो
वरना देखो मेरे अन्दर भी इक जज़्बा उट्ठेगा
रक्खा है जो हाथ जेब में निकल के ऊपर उट्ठेगा
इसीलिए वो बन्दा कहता बार-बार यही बात

कि मैं जाना चाहता हूँ कहीं और...?
...ना...
मैं रहना चाहता हूँ इसी ठौर...?
...ना...
मैं जानना चाहता हूँ वहाँ-वहाँ...?
...ना...
मैं रहना चाहता हूँ यहाँ-वहाँ...?
...ना...
वहाँ...?
...नहीं
तो वहाँ...?
...नहीं
तो वहाँ...?
...नहीं
तो कहाँ...?

...जब कोई ठौर मेरा ना होने की होती है बात...
तो मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं खूब जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं पी जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं खा जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका

खोया बचपन ( ज्योति लकड़ा)


गंाव से शहर आयी सुगिया 
डिबरी की म़िद्धम रौशनी में
खोंमचों पर रखे चने-चबेनों को ताकते

अक्सर छूट जाती पीछे

आपा-धापी के इस खेल में रहती पीछे
कक्षाओं में भी नहीं आती हिन्दी-अंग्रेजी 
भाषाओं के इस खेल में 
छूट जाती पीछे सुगिया

छूटती जा रही थी वह 
जीवन डगर से 
सब कक्षाओं का एक सा नक्शा
नक्शों के उन भूल-भूलैयों में 
खोया उसका बचपन 
खोया-खोया सा उसका मन
गांव-घर से जुड़ी यादें 
ले जाती खींच 
तितलियों के पीछे

नदी-नाला पहाड़-कंदरा
पार कर
पहुंची गांव-घर
ढ़ुंढ़ा ढ़ुढ़ी के 
खेल-खेल में 
मिल गए वो बीज-बारी 
जिसे
पुरखों
ने लगाया था
हड़प्पा के खेतों में

रोप दिए हैं उसने
अपने खेतों में वे बीज
सुगिया 
अब काटेगी फसल
और 
फाग के राग में गाएगी कटनी के गीत।


सोमवार, 14 जुलाई 2014

नयी सदी की औरत

   -- अनुपम मोंगिया
'' अब मैं वो पेड़ नहीं बन सकती
कि तुम पत्थर मारो
और मैं फल दूँ तुमको


कि तुम जिधर को खेओ
मैं खिचती चली जाऊँ

मैं वो फूल नहीं बन सकती
कि तुम पत्ती-पत्ती करके मसलो
और मैं बेशर्मी से महकती रहूँ

नहीं मैं वो काँटा भी नहीं हूँ
कि बिना तुम्हारे छेड़े
चुभ जाऊँ हाथों में


पर वो बादल भी नहीं हूँ
कि किसी को प्यासा देख इतना बरसूँ
कि खुद खाली हो जाऊँ


तुम्हें छाया चाहिए
फल चाहिए
तो मुझे भी खाद पानी देना होगा

तुम्हें पार लगाने का दायित्व मेरा सही
पर मुझे लहरों की दिशा में तो खेना होगा


मेरा रंगगंधस्पर्श तुम ले लो
पर मुझे डाली के साथ तो लगे रहने देना होगा


स्वीकार सको तो स्वीकारो
मुझे मेरे तमाम गुणों-अवगुणों

और तमाम शर्तों के साथ


वरना मैं खुश हूँ
सिर्फ मैं होने में ही.....''

      

रविवार, 13 जुलाई 2014

तू न मेरे बस का ( Naushad Alam)


तू न मेरे बस का

न मैं तेरे बस का
तू न मेरे बस में
न मैं तेरे बस में

तेरी राह में न मेरी राह
न मेरी राह में तेरी राह
तुझसे न मेरा निबाह
न मुझसे तेरा निर्वाह

दिल देता है सलाह
न करें एकदूजे की परवाह
जिन्दगी हो जाएगी स्याह
वजूद हो जाएगा तबाह

तुमको मुबारक तेरी दुनिया
मुझको मुबारक मेरी गलियाँ
न तुम करो मुझ पर मेहरबानियाँ
न मैं करूं तुझ पर निगाहबानियाँ

एक सफल इंसान


काव्या 

एक सफल इंसान
जिसे नहीं दिखता 
पडोस की असफला

एक जीता हुआ इंसान
जिसे नहीं दिखता 
पडोस की हार

एक इंसान 
टीका जिसका लाभ 
व्यक्तिगत रूप पर
दिखता नहीं समाज की जरूरत

एक इंसान 
जिसे सुख ही पाया 
वह 
पड़ोसी के दूःख 
दिखेगे कहां से 

एक इंसान 
भरा पेट जीता जहां पे
कहां दिखेगा
भूख से मरने वाले 
इंसान उसे 





नाकामयाब

काव्या 

हां मेरे पास रहने वाले 
सब के सब नाकामयाब है
मेरे जिंदगी में
नाकामयाब की परछाई लगी 
जन्म दाता ने 
मेरे जीवन 
न सवार कर अपनी
नकामयाबी कर दिया
परिवार ने 
मेरे जीवन मुझ पर छोड 
नाकामयाब कर दिया।
मेरा घर न बसा 
मैं न कामयाब हो गयी
इस जिन्दगी में 
अपनी इच्छा को 
तर्जी ही न दिये
हां मेरे जीवन में 
नाकामयाब ही 
हिस्सा में मिल गया। 

शनिवार, 12 जुलाई 2014

यूँ तोहमत (Naushad Alam)

यूँ तोहमत लगाने से पहले
मेरी फितरत तो जान लेते
कीचड़ उछालने से पहले
मेरी सीरत तो पहचान लेते
मैं तो ठहरा नाक़ाबिल-नाशाइस्ता
आईने में अपनी सूरत भी तो छान लेते

नाक़ाबिल - अयोग्य
नाशाइस्ता- असभ्य

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

बहारों का फ़लक चाहता हूँ

NAUSHAD ALAM

बहारों का फ़लक चाहता हूँ
तेरे नरगिसी हुस्न की महक चाहता हूँ

मेरी वफाओं का सिला मिले न मिले
तेरी अदाओं का लहक चाहता हूँ



तेरी बाहों का सहारा मिले न मिले
तेरी चूड़ियों की खनक चाहता हूँ

तेरी पलकों की छाँव मिले न मिले
तेरे काजल की चमक चाहता हूँ

तेरे होंठों का जाम मिले न मिले
तेरी शोख़ियों की दमक चाहता हूँ

तेरे क़दम मेरी तरफ बढ़े न बढ़े
तेरी पायल की झनक चाहता हूँ

सोमवार, 7 जुलाई 2014

चांदनी रात के बाद


रौशनी आर्य 

हां रूपसी नहीं तुम
चलने का ढग
बोलने का ढग
ठीक नहीं है 
तेरे
भा’ाा तो बेकार लगती है 
तेरे पहनने के कपड़े 
तुम्हे “ाोभा नहीं देता
आओं मैं सजा दू।
चलना सीखा दंू
बोलना सीखा दूं।
लिखना सीखा दूं।
मन में जब भी कोई 
बाते आए लिख कर 
कर दिया करना मेल 
मैं अच्छा से बना,
 दुनिया 
के तट पर 
खड़ा कर दूंगा तुझे
मैं तुम्हे बनाउगा। 
बस मेरी बाते मानती रहना।
किसी से बाते न करना 
तेरे लिए मैं हूं। 
और मेरे लिए तू है।
चांदनी रात के बाद
मैं अपने सनम खाना 
और तू अपने घर में रहना
अकेली नहीं हो तूम
फोन में दिन भर 
बाते तो करता रहता हूं
तू अकेली कहां हैं
तेरे साथ मैं हूं।
कैसे करू 
जब याद तेरी आएगी 
आ जाउगा तेरे पास 
एक रात के लिए 
महिने भर के लिए हो 
जाएगी छुटी 
नौकरी करता हूं मैं
काम भी देखना है
जरूरत पड़े तो 
तेरे “ाहर में नौकरी कर लूगा मै
मेरे पास तेरे लिए अनेको सपने है
मैं तूम्हे देना चाहता हूं।
बस तू किसी से बाते न करना 
जैसा मैं कहता तू वैसा ही करना
हम चलेगे साथ दूर कहीं 
जहां अपने कोई न हो 
तेरे को धुमा लाएगे
पर यात्रा टिकट तू कटाना
मेरा “ाहर छोटा है 
लोग जान जाएगे
हमें तो साथ चलना है 
दुनिया से ढीढोरा क्या पीटना है
मैं तेरे साथ हूं।
दिन भर तेरे फोन पर रहता हू।
चांदनी रात में  
मैं अपने सनम खाना 
और तू अपने घर पर रहना।
तेरे से कुछ नहीं मांगता मैं 
बस तू प्यार से जो दे दे।
वहीं बस मेरा है
मैं कमाता कम हूं
खर्च अधिक है 
मेहनत रोज करता हूं
पर तेरे लिए नहीं
तू तो सक्क्षम है
तू दूनिया घूमती है
तेरे पास अपने सब कुछ है
इस गरीब से उम्मीद मत करना
तुम्हे दुनिया का सुख दिया हूं
और तूम्हे क्या चाहिए?
मेरे पास देने के कुछ नहीं है
पर घर के लिए लेना है 
रिलांइस और बिग बाजार से कई समान
मुझे अपने घर के लिए 
बनाने है फर्नीचर के महंगे सामान
अपने सनम का घर बनाउगा 
तू देखते रह जाएगी
उस घर में एक बार तूझे लेकर जाउगा
एक घंटा के लिए
सुबह की बस से आना 
दो बजे की बस से वापस चली 
जाना
मेरी इच्छा है 
मैं अपने सनम के लिए  
बनाये घर एक बार 
तूझे दिखाउ 
जिसमें तूने कुछ पैसे 
जूगाड़ कर मदद की थी!
बस  
अब मैं स्वतंत्र हूं
तेरा क्या तेरे लिए साल में 
एक कार्यक्रम करवा दूंगा
तू कुछ पैसे दे देना।
मै सब ठीक कर रहा हूं।
अपने जीवन को स्मूथ करने के लिए
और कुछ वक्त लग जाएगा
तेरे रिश्ते के बारे में 
जान गये है घर पर
मैं तूम्हे अपने घर नहीं ले जाना चाहता
लोग क्या कहेंगे।

तेरे घर में आना मुझे 
अच्छा लगता है 
वहां के हवा में 
खूशबू है 
खाना में स्वाद है
लोगो में अपनापन है
बच्चे मेहनती है
तेरे घर में तुझे 
मानते सब है। 

तू तो मेहनती हो
अपने बल पर जीती औरत हो
तूम्हे क्या कमी है
तू बना लेगी अपना 
आशियाना 
लाख लाख टका देता जमाना
जरूरत होगी नौकरी के बाद 
मैं रहूंगा 
तेरे साथ
पर चांदनी रात में 
मैं अपने सनम खाना और
तू अपने घर रहना
फोन पर तो दिन भर तूम्हारे साथ हू।
मैं अपने घर में समय नहीं दे पाता
भागा रहता हूं घर से 
अपने आफिॅस के काम से
और दिन भर तूझे बाते करता
घर पर नहीं कर सकता तूझसे बातें 
मैं तोडना नहीं चाहता 
किसी रिश्ते 
ज्याद प्रेम करता हूं तूझको
तू बिमार पडेगी तो  
मैं नहीं आ पाउगा 
सहानूभूति भी नहीं जता पाउगा
और मैं भी बीमार पडूं तो 
मत आना देखने 
तू आएगी, जमाना जान जाएगा।
“ाहर में चर्चा बदनामी का छा जाएगा।
तू समझदार है
मेरी कहना मान लेना 
तू मुझे प्रेम करती हैं
मुझे अपमान से बचा लेना 
तू मत करना केस हम पर 
क्या करू? 
मेरी स्थिति ही ऐसी है
तुझे जो समझ में आए कर लेना
तू करती है प्यार मुझसे 
नहीं होने देगी मेरी बंदनामी 
मैं अपने परिवार को 
तेरे लिए नहीं छोड़ सकता
पर मैं करता हूं प्यार तूमसे
इसलिए हक से कहता हूं तूझे

तू ईमेल पर मत बैठना 
कुवारें लड़कों के पास मत जाना
फेसबुक के लफूवा से बाते मत करना
मुझे अच्छा नहीं लगता है।
तेरा बेवजह घूमना 
मुझे। 
मैं बेचैन हो जाता हूं
तेरे साथ किसी और को पाता हूं
मैं दूखी होता हूं
लगता है तू चली जाएगी
सोने की अंडा देने वाली
दूर कही जाएगी
तूझे खोना पंसद नहीं मुझको
तेरे लिए जीता हूं
हर पल 
क्या करू ? 
सजा जो देना है 
दे दो मुझे 
पर मुझे तील-तील कर मत मारना 
इस्लाम में बराबर का दर्जा है
औरतों के लिए 
हिन्दू में औरतो के लिए नही 
ऐसी व्यवस्था 
मैं 
गुलाब गुच्छे के फूल वाली 
साडी अपनी सनम को पहनाउ
इच्छा है मेरी
तू ले लेना 
कम किमत वाली साड़ी 
सकक्ष्म है तू 
अपने से खरीद सकती

मैं बी ए भी पास नहीं कर पाया हू।
अपनी सनम को विवाह के बाद
मैटिक कराया
नौकरी लगाया
तू तो एम ए है 
कर ले तू पीएचडी 
पर मुझे एमए करा दे
नहीं मुझे एम ए करने दे 
साथ पीएचडी कर लेगे
तू मेरे पढ़ने का खर्च उठा लेना।

हमने कई वादे किये है तूम्हारे साथ 
क्या करू?
निभा नहीं पाता हूं
काम के बोझ से 
अपने को टूटा पाता हूं
जब बात करता हूं तूझे 
तरोताजा हो जाता हूं।
बस अब घर के गेट पर 
खड़ा हूं 
तेरे इज्जात लेकर 
अंदर  जाउगा
“ारीर में काफी दर्द है 
जाकर सो जाउगा।
सुबह देर तक सोउगा
मत करना फोन मुझे 
मैं उठ कर सबसे पहले 
फोन तूझे लगाउगा।