शनिवार, 13 दिसंबर 2008

क्लासिक बाय


गंव की सरजमीन की सुगंध ले,
चले थे पलामू के गांव से
मिली जूली संस्कृति ं खड़ा एक ’ाहर रांची ,
परिचय मैने एक नाम के
साथ क्लासिकल बाॅय के साथ
अब तुम्हारे पास ना गांव की संस्कृति बची और
ना बना पाये
नये संस्कृति की पहचान
हर बार तुम मुझे लड़की होने का अहसास दिला चले गये
रात के 9 बजे
घर आने पर प्र’न जब उठाते हो बार बार ’ारीर के उपर इसारा कर उगलियां उठाते रहे हो हर बनायी गयी व्यवस्था के
खिलाफ तुम जब बोलते हो
स्त्री के स्वतंत्रता वही पूरानी बाते दी जाते है थोप
समाज के हर वर्ग के लडकियो को देखा दिन रात हर पल
गली के गली धुमते होगे हर स्थान पर लड़कियां जरूर तुम्हे मिलती होगी
जिन्स वाली माडॅन बन चुकी हैं
उन्हे समाज पुरूष द्वारा बनाएं व्यवस्था का
खिलाफ ही करना है कितना बुरा लगता
जब तुम्हारे विरूध कम उम्र कि लडकियां के
सवाल को दरकिनार कर गये
सलवार वाली सादगी , सुसंस्कृति पूर्ण लगी होगी।
किन्तु तुमने साडी वाली ,
बुरके में रहने वाली
मर्यादित स्त्री पर
कभी ’ाब्द ही नही कहा होगा।
समाज में कई धाराएं हैं संधर्ष नियति बन चुकी है।
उस व्यवस्था के खिलाफ
घर के चार दिवारी पर रह कर तुम भी
प्राच्यवाद संस्कृति में अधिन कन्या ही चाहिए।

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