दामिनी-ई-कोह
रिची बुरु
शनिवार, 13 दिसंबर 2008
प्रेम प्रकास की कंविता
ःमैं’
तैयार है
कुचल देने को भविष्य
निगल लेने को सपने
और .............
ः वो’ और तुम
तैयार है
मैं बनने को!
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