क1
प्रेम प्रका’ा की कवितासर के उपर पानी है, चुप रहना नादानी है।
बिज- बिजाते घाव हो तो,
खामो’ाी बेमानी है।
जीवन है तालाब नहीं
ये लहरों की सानी है।
हाल- ए - माजी तू ही कह
जो जमा, कहां वो पानी है।
उठो! पुकार हे वक्त की
चल, लुट रही जवानी है।
सूखे लब औ भूखे पेट
कहती यही कहानी है
सिसक- सिसक घरती मेरी मांग रही कुर्बानी है।
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