शनिवार, 13 दिसंबर 2008

क1


प्रेम प्रका’ा की कविता



सर के उपर पानी है, चुप रहना नादानी है।
बिज- बिजाते घाव हो तो,
खामो’ाी बेमानी है।
जीवन है तालाब नहीं
ये लहरों की सानी है।
हाल- ए - माजी तू ही कह
जो जमा, कहां वो पानी है।
उठो! पुकार हे वक्त की
चल, लुट रही जवानी है।
सूखे लब औ भूखे पेट
कहती यही कहानी है
सिसक- सिसक घरती मेरी मांग रही कुर्बानी है।

कोई टिप्पणी नहीं: