शनिवार, 13 दिसंबर 2008

सफदर


धूल को धूल
फूल को फूल कहने वाले
दोस्त को दोस्त
दु’मन को दु’मन कहनेवाले
पानी बचाकर आग पीनेवाले,
जीवन का हर राग गानेवाले
सफदर ने राह जो बनाया
परम्परा है हमारी।
जहां मौत का नाम नहीं
चाहे.........
बम हो या पिस्टन या हो विस्फोटक क्रिस्टल
त्रि’ाूल हो या कटारी हैजा हो या महामारी
मौत का नाम नही
आज ............
सिर्फ गाजियाबाद
का ही चैक नहीं
हर नगर के
चैक पर
हर गली
हर नुक्कड़ पर सफदर एक- एक कर रहा आहवान
आंखे खोलो
रौ’ान कर दिमाग
कर अपने
दु’मनों की पहचान
हर गली
हर नुक्कड़ पर
सफदर पीट रहा ढोल

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