शनिवार, 13 दिसंबर 2008

निरंतर

pram Parkash ( Daltenjung)

अकाल के बाद मौसिम आया आका’ा चोंक पड़ा
पंतग की जगह उड रहा है आदमीं
वि’वास नहीं हुआ
आंखें छोटी करके
गोर से देखा
आदमी ही था जो उड़ नहीं रहा था
उडाया जा रहा था
डोर से बंधी लटाई
थ्कसी आदमी के हाथ नहीं .गिद्वों की चोंच में था गिद्वगिद्व!
पेंच पर पेंच लड़ा रहे थे
कभी झटका कभी ढोल
दे रहे थे......
आदमी!
.आदमी खु’ा
.बेहद खु’ा
ये क्या.......?
भक्- भक्काटा
टादमी लट खाते- खाते ज्मीन पर आ गिरा .

गिद्व नोचने लगे
आह के साथ एहसास हुआ!

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