शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

झारखण्डी के आंखों से

अलोका 
झारखण्डी के आंखों से 
मै देखा हुं दर्द रे
विकास दूर नजर आए,
बड़ी दूर नजर आए
जब बैठी उनके साथ
मन में उसके सपने आए
एक गांव था सबके
ओ अब खोने लगा है।
वोट देकर
हाय सब कुछ लुटने लगा है।
इस सरकार के भरोसे पे
सब सूखने लगा है।
भूल के जब गांव रे
जाती हूं देखने
मर मर के जी रहे हैं।
लुट रहे जमीन जंगल को
दिन रात दुआ मांगे
आदिवासी सबके वास्ते
कभी अपनी उम्मोदांे का
फूल न मुरझाए
झारखण्ड जब से सरकार के
 रंगों मों रंगा है।
गांव गांव में जनता रोने लगी है।
सबके प्यार भरे सपने
कहीं ये व्यवस्था छिन न ले
मन दुखी हो जाए

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

खाली है एक हवेली

- शाहिद अख्‍तर

खाली है एक हवेली

बिना किसी किराये के

शर्त बस इतनी है
...
किरायेदार अच्‍छे हों

भाषा प्‍यार की बोलें

रहें सुकून से

अमन और शांति से

झगड़े करें जरूर

मगर विचारों के

तलवार चलाएं शौक से

कि कोई हर्ज नहीं इसमें

जंग की भी इजाजत है

बस ख्‍याल यह रखें

जंग तारीक ताकतों से करें

तो फिर से मैं अर्ज कर दूं

मेरे दोस्‍तो

इंतजार है किरायेदारों का

कि बहुत जगह है

दिल की इस बोसीदा सी हवेली में

- शाहिद अख्‍तर

शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

वो शाम

Mutha Rakesh

बहुत देर से

लहरों पर उछलती

कभी पानी उपर

कभी पानी में

होती गयी मेरी आँखें

दूर पार

कही शायद

होगी वहां भी आँखें

तभी तो

मंत्रमुग्ध

हुई जाती है

वो शाम

रात होने से पहिले

मुक्तिबोध

पता नहीं,कब,कौन ,कहाँ ,किस ओर मिले,

किस साँझ मिले, किस सुबह मिले !!

यह राह ज़िंदगी की ,जिससे जिस जगह मिले

है ठीक वही ,बस वहीं अहाते मेंहदी के

जिनके भीतर

है कोई घर

बाहर प्रसन्न पीली कनेर

बरगद ऊँचा, ज़मीन गीली

मन जिन्हे देख कल्पना करेगा जाने क्या !!

---- मुक्तिबोध

मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

प्रिया

mirchi

त्योहार दशहरा का
उमंग आसमान पर थी।
मानों सारा संसार की ख़ुशी
प्रिया के दमन पर हो
वक्त और बाजार के बीच
नन्हीं सी प्रिया
पूजा के आनन्द के साथ
खिलौने की ओर
लग रहा था
बाजार में सजें नन्हें बच्चों के दुकान
उनके शो रूम की तरह थे।
बिक रहीं थी बंदूक
गाडि़यां, गुडिया बाजार से गायब थे
मिठाईया पंसद से
गायब हो गयी
चैमिन ने अपना धाक
प्रिया के जीवन में जमाया।




शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

फैसला


मिर्ची

आज धुप में गर्माहट काम थी.
बहर के रस्ते पर
तेज और तेज गाड़िया चल रही थी
लोगो के चहरते पर
फैसला सुनने की चाहत
आपने काम का निपटारा का
तनाव
समय बीतने के साथ
रास्ते में हौर्न काम पद रहे थे
कई दुकानों की स्टार निचे आ रही थी
दुकानों के सामान दूर रखे जा रहे थे
एक ही समुदाय समूह में क़तर बनाये
आपने घर की और थे.
दुपहर का समय था.
फ़ोन पर सुचना
आपनो को लेने लगे थे
हर घर पर टीवी खुली हुई थी.
मेहनतकश को छोर
पूरी दुनिया टीवी के करीब था


शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

हम बस्तर के आदिवासी : एक गीत


आज़ाद सक्सेना


हम बस्तर के आदिवासी
आओ तुम्हे हम गीत सुनाएं
जो बीती है हम पे
आज हम सब खुल के बताएं
जो बीती है हम पे

अरे जागो मेरे आदिवासी
ओ मेरे वन के निवासी
जब तक तुम नहीं जागोगे
अपना हक नहीं मांगोगे
कुछ भी नहीं है मिलने वाला

हम बस्तर के आदिवासी...

अरे हमारे नदी पे बांध बने हैं
पुल और मकान बने हैं
हमारे पास नहीं है रोटी
तन पे है सिर्फ लंगोटी
सारा प्रशासन डीलम डोल डिलम डोल

हम बस्तर के आदिवासी...

अरे हाकिम आया, अफसर आया
जो भी आया उसने लूटा
मुर्गा काटा, बकरा खाया
हम बस्तर के आदिवासी...

अरे पत्थर तोडा, रोड बनाया
हाकिम आया, अफसर आया
जो भी आया उसने लूटा
हम बस्तर के आदिवासी...

अरे स्कूल है पर मास्टर नहीं है
दवाखाना पर डाक्टर नहीं है
डाक्टर है तो दवाई नहीं है
मास्टर है तो पढाई नहीं है
सारा प्रशासन डीलम डोल

हम बस्तर के आदिवासी...

अरे जागो मेरे आदिवासी
ओ मेरे वन के निवासी

आज़ाद सक्सेना

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010

इंतजार की शाम

मिर्ची

पुरे देश मै
अमन,शांति के पीगम
पहुची जा रही है.
एकता अत्तुता पर मजबूती बनी जा रही थी.
राजनीती पार्ट हो या धार्मिक गुरु
हर अस्थान मै एकजुट
दिखी जा रही थी
इतना प्रेम. भएइचारा
सपने में नहीं था
कभी
गुमनाम फैसले पे
मीटिंग कर रहे थे सभी
इंतजार की शाम का.
थे


शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

सागर

अंजू प्रसाद

तू सागर है.
समुद्र है.
दूर तक पानी ही पानी.
बस खारा पानी .
जो आँखों से निकलती है.
बीच सागर मे भी प्यासी.
प्यास नहीं बुझती पानी
चारों और सिर्फ पानी ही पानी.
बस खारा पानी