पता नहीं,कब,कौन ,कहाँ ,किस ओर मिले,
किस साँझ मिले, किस सुबह मिले !!
यह राह ज़िंदगी की ,जिससे जिस जगह मिले
है ठीक वही ,बस वहीं अहाते मेंहदी के
जिनके भीतर
है कोई घर
बाहर प्रसन्न पीली कनेर
बरगद ऊँचा, ज़मीन गीली
मन जिन्हे देख कल्पना करेगा जाने क्या !!
---- मुक्तिबोध
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